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________________ अन्त में बोला जाता है। माना जाता है कि नौवीं इसे पहली बार १८९६ में इंडियन नेशनल शताब्दी में जापान में किमिमाय नामक देशभक्ति गीत कांग्रेस की सभा में गाया गया। 'जन गण मन' देश गाया जाता था। यह गीत ही विश्व का प्रथम राष्ट्रीय का राष्ट्रगान है । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की इस रचना गीत था। पहली बार १८१६ में अग्रेजों का प्रथम राष्ट्रीय को संविधान सभा ने २४ जनवरी १९५० को मान्यता गीत 'गॉड सेव द क्वीन' (किंग) गाया गया था, दी। इसे पहली बार १९११ में हुए कलकत्ता अधिवेशन जिसकी रचना जॉन कुल ने की थी। संयुक्त राज्य में गाया गया। इस का पहला प्रकाशन टैगोर द्वारा अमेरिका का राष्ट्रीय गीत १८१२ में युद्ध के दौरान संपादित 'तत्त्वबोधिनी' पत्रिका में भारत विधाता शीर्षक लिखा गया था। ताइवान और जोर्डन के राष्ट्रीय गीत से हुआ। इसके पहले के पाँच छन्दों को ही अपनाया केवल चार पंक्ति के हैं। गया। (नरेश कुमार बंका) हमारे देश का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् है, जिसे राष्ट्रगान को इस गीत से गाया जाता है कि बंकिमचन्द्र चटर्जी ने लिखा लगभग ५२ सेकेण्ड में यह समाप्त हो जाता है। 0 प्रस्तुति - निशा, शर्मिला, सम्पर्क सूत्र - आचार्य श्री कनककन्दीजी गुरुदेव, C/ डॉ. नारायण लाल कच्छारा, ५५ रविन्द्र नगर, उदयपुर फोन-०२९४-२४९१४२२ चेतोहरायुवतयः सुहृदानुकूलाः, सद्वान्धवाः प्रणयगर्व गिराश्च भृत्याः। गर्जन्तिदन्तिनिवहा तरलातुरंगाः, राजा -- मेरे चित्त को हरने वाली स्त्री है, मित्र मेरे अनुकूल हैं, मेरे भाई बन्धु बड़े सज्जन हैं, मेरे नौकरों को घमंड बिलकुल नहीं है, मेरे द्वारे परे हाथी गरज रहे हैं,घोड़े हिनहिना रहे हैं; मैं ऐसी सम्पदा वाला हूँ। इस प्रकार तीन चरणों को राजा बार-बार गुनगुना रहा था, तब चौथा चरण चोर ने कहा- सम्मीलनेनयनयो नहिं किंचिदस्ति। चोर - अर्थात् आँख बन्द होने पर तुम्हारा कुछ भी नहीं है। एक वृद्धा स्त्री की कमर बहुत ही झुक गई थी, उससे एक लड़के ने हंसकर पूछा अधः पश्यसि किं माते पतितं तव किं भुवि । रे रे मूर्ख न जानासि गतं तारुण्य मौक्तिकम् ॥ हे माता ! तू नीचे को क्या देख रही है ? क्या तेरा कुछ जमीन में गिर गया है ? (स्त्री ने जवाब दिया) अरे मूर्ख तू नहीं जानता मेरी जवानी रूपी मोती गिर गया है। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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