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________________ सार्थक हो जाता है। आदरणीय काका कालेकर ने खलील जिब्रान का यह वचन उद्धृत किया है कि 'एक आदमी ने आत्मरक्षा के हेतु खुदकुशी कीआत्महत्या की, यह वचन सुनने में विचित्र सा लगता है । " आत्महत्या से आत्मरक्षा का क्या संबंध हो सकता है ? वस्तुत: यहाँ आत्मरक्षा का अर्थ आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों का संरक्षण है और आत्महत्या का मतलब शरीर का विसर्जन । जब नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण के लिए शारीरिक मूल्यों का विसर्जन आवश्यक हो, तो उस स्थिति में देह-विसर्जन या स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण ही उचित है। आध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा प्राणरक्षा से श्रेष्ठ है। गीता में स्वयं अकीर्तिकर जीवन की अपेक्षा मरण को श्रेष्ठ मान कर ऐसा ही संकेत दिया है । १९ काका कालेकर के शब्दों में, जब मनुष्य देखता है कि विशिष्ट परिस्थिति में यदि जीना है, तो हीन स्थिति और हीन विचार या हीन सिद्धान्त मान्य रखना जरूरी ही है, तब श्रेष्ठ पुरुष कहता है कि जीने से नहीं, मर कर ही आत्मरक्षा होती है। वस्तुत: समाधिमरण का यह व्रत हमारे आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए ही लिया जाता है और इसलिए यह पूर्णतः नैतिक है । सन्दर्भ : १. उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकारे । धर्मा विमोचनमाहुः संल्लेखनामार्याः । । - रत्नकरण्ड श्रावकाचार २. देखिए - अतंकृतदशांगसूत्र के अर्जुनमाली के अध्याय में सुदर्शन सेठ के द्वारा किया गया सागारी संथारा । ३. देखिए - अंतकृतदशांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९८१, वर्ग ८ अध्याय १ । ४. संयुक्तनिकाय/ अनु. जगदीश कश्यप एवं धर्मरक्षित / महाबोधि सभा सरनाथ, बनारस / १९४५ई. /२१/२/ ४/५/ Jain Education International ५. वही ३४/२/४/४ ६. ७. ८. ९. रत्नकरण्ड श्रावकाचारा २२ १०. संजमहेउं देहो धारिज्जइ सो कओ उ तदभावे । संजम - फाइनिमित्तं देह परिपालणा इट्ठा ॥४७॥ ओधनिर्युक्ति/४ धर्मशास्त्र का इतिहास पृ. ४८८ अपरार्क पृ. ५३६ धर्मशास्त्र का इतिहास पृ. ४८७ धर्मशास्त्र का इतिहास पृ. ४८८ ११. दर्शन और चिन्तन / पं. सुखलाल संधवी / गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद / १९५७ / खण्ड २/पृ. ५३३-३४ १२. संभावितस्य चाकीर्तिमरणादतिरिच्यते । २/३४ १३. परमसखा मृत्यु / काका कालेकर/प्रका. सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली / १९७९ / पृ. ३१ १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. वही पृ. २६ पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म / भूमिका | परमसखा मृत्यु/काका कालेकर/पृ. १९ पाश्चात्य आचार विज्ञान का आलोचनात्मक अध्ययन/पृ. २७३ परमसखा मृत्यु / काका कालेकर/पृ. ४३ गीता २ / ३४ परमसखा मृत्यु / काका कालेकर/पृ. ४३ निदेशक - प्राच्य विद्यापीठ ओसवाल सहरी, शाजापुर (म. प्र. ) ४६५००१ पुरुषार्थ की गति ! भगवान की वाणी में पुरुषार्थ की बात आयी है; अतः जो पुरुषार्थ हीनता की बात करे, वह भगवान का सच्चा भक्त नहीं है । महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/72 For Private & Personal Use Only ३५, www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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