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________________ अनशन, मरण, तुल्य और बाहुल्य - ' प्रायश्चानशने मृत्यौ तुल्यबाहुल्ययोरपि' । इति विश्वः । 'संन्यास' (आहारत्याग) को 'प्रायोपवेशिका' भी कहा गया है। यथा - उवाच मारुतिर्वृद्धे संन्यासिन्यत्र वानरान् । अहं पर्यायसम्प्राप्तां कुर्वे प्रायोपवेशिकाम् ॥७ / ७६॥ भट्टिकाव्य । अनुवाद – हनुमानजी ने वानरों से कहा- 'वृद्ध जाम्बवान् के संन्यासी हो जाने पर ( अनशन आरंभ कर देने पर ) मैं भी इस पर्वत पर क्रमप्राप्त प्रायोपवेशिका ( अनशन) आरंभ करता हूँ । 'संन्यासिनि - अनशनवति, 'प्रायोवशिकाम्अनशनम्' (पं. शेषराज शर्मा शास्त्रीकृत टीका / भट्टि काव्य ७ / ७६) यह अनशन (आहार त्याग) मरण के लिए किया जाता है और जिसका इस तरह मरण होता है, उसका दाहसंस्कार नहीं किया जाता ' अत्र प्रायोपवेशतो मरणे दाहसंस्काराऽभावादिति भावः' (पं. शेषराज शर्मा शास्त्रीकृत टीका/भट्टिकाव्य ७/७८) । अनशन द्वारा मरण को 'प्रायोपासना' शब्द से भी अभिहित किया गया है 'प्रायोपासनयामरणानशनाऽनुष्ठानेन ।' ( वही / भट्टिकाव्य ७/७३) हिन्दू पुराणों में आहारत्याग द्वारा किये जाने वाले मरण के लिए 'संन्यासमरण' के अतिरिक्त 'प्राय', प्रायोपवेश, प्रायोपवेशन, प्रायोपवेशिका, प्रायोपवेशनिका, प्रायोपगमन, एवं प्रायोपेत शब्द भी प्रयुक्त हैं। (देखिए, वामन शिवराम आप्टे, संस्कृतहिन्दी कोश,‘प्राय’)। सर एम. मोनिअर विलिअम्स ने संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी में इन शब्दों के अर्थ का प्रतिपादन इस प्रकार किया है संन्यास - abstinence from food, giving up the body. संन्यासिन् abstaining from food [Bhatt] Jain Education International - - प्राय (पुं.) - departure from life, seeking death by fasting [as a religious or penitentiary act, or to enforce compliance with a demand.] आमरण अनशन, किसी इष्टसिद्धि के लिए खाना-पीना छोड़कर धरना देना (आप्टेकोश ) । प्रायोपगमन going to meet death, seeking death [by abstaing from food.] प्रायोपवेशन - abstaining from food and awaiting in a sitting posture the approach of death. सल्लेखना के लिए 'संन्यासमरण' और 'प्रायोपगमन' शब्दों का प्रयोग जैनशास्त्रों में भी किया गया है । यथा 'अथ संन्यासक्रिया - प्रयोगविधिं श्लोकद्वयेनाह' – आगे संन्यासपूर्वक मरण की विधि दो श्लोकों में कहते हैं । (अनगारधर्मामृत ९/६१६२ / उत्थानिका / पृ. ६७३ / हिन्दी अनुवाद : सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ) । पायोपगमणमरणं भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तिविहं पंडितमरणं साहुस्स जहुत्तचारिस्स ॥ २८ ॥ भगवती आराधना अनुवाद प्रायोपगमन - मरण, भक्तप्रतिज्ञामरण और इंगिनी - मरण ये तीन पण्डित-मरण हैं। ये शास्त्रोक्त आचरण करने वाले साधु के होते हैं। - 'प्राय अर्थात् संन्यास की तरह उपवास के द्वारा जो समाधिमरण होता है, उसे प्रायोपगमन समाधिमरण कहते हैं।' (षट्खण्डागम धवलटीका/विशेषार्थ/पुस्तक १/१, १, १/पृ. २४/१९९२ई./सोलापुर)। उपनिषदों में कहा गया है कि परिव्राजक एवं परमहंस परिव्राजक साधु 'संन्यास' ( अनशन) से ही देहत्याग करते हैं - १. 'तदेतद्विज्ञाय ब्राह्मण: परिव्रज्य.. संन्यासेनैव देहत्यागं करोति ।' (नारदपरिव्राजकोपनिषद् / तृतीयोपदेश / ईशाद्यष्टोत्तरशतोपनिषदः / पृ. २६८ ) । महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/62 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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