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________________ "महावीर जयन्ती स्मारिका 1977 ग्रंथ रत्न प्राप्त हुआ । पढकर देखकर मन गद् गद् हो गया और कुछ काव्य पंक्तियां लिखने को उत्साहित हुआ जो प्रेषित हैं । ग्रंथ गूंथ कर सुधर सजाई, नहीं एक पढ़कर मन में हुआ उजाला || परिश्रम, बडी योजना, कितने दिन में सफल बनाई 1 या कि स्मारक, बनकर एक पत्रिका प्राई 11 अनोखी सज्जा भूरि भूरि मन एक बार प्रारम्भ किया तो, बड़ा Jain Education International यह स्मारिका सुन्दर साज महावीर यश की मणिमाला | पूरी पंक्तियां को ललचाये | महावीर जयन्ती स्मारिका 78 बार बार अध्ययन कराये 1 राजस्थान जैन संगम की यह कृति अनुपम आकर्षण है । 'पोल्याका' जी के पावनतम, अनुभव का मंजुल दर्पण है ।" " इतने थोडे समय में इतनी सारी महत्वपूर्ण सामग्री को इतने सुचारु ढंग से प्रकाशित करने में आपने जो कठिन कार्य किया है, वह वास्तव में बड़ा प्रशंसनीय है । सामग्री जैन कला, साहित्य एवं धर्म में रुचि रखने बालों के लिये बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी ।” श्री घासीराम 'चन्द्र' साहित्यरत्न कमलागंज, शिवपुरी (म. प्र. ) " प्रस्तुत प्रक में इतिहास, संस्कृति और साहित्यिक विषयों की सामग्री विशेष सराहनीय है | समयोचित 'स्मारिका' प्रगति पर है और आगे भी यही परम्परा बनी रहे ऐसी मेरी कामना है ।” पं० उदयचन्द शास्त्री, इन्दौर डा. ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा, गाजियाबाद कीपर राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली । For Private & Personal Use Only 玡 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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