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________________ SORISM PORN COM S GOOO SORRO (Are) SPREAD वर्तमान राजस्थान राज्य में विलय होने वाली भू. पू. जयपुर रियासत में और चाहे किसी चीज की कमी रही हो लेकिन उपसनागृहों तथा ज्ञानालयों को यहाँ कभी कोई कमी नहीं रही। मन्दिरों के बाहुल्य के कारण जहां इसे मन्दिरों के नगर की संज्ञा से अभिहित किया गया वहां ज्ञान के क्षेत्र में यह दूसरी काशी कहलाई । उपासना और ज्ञानार्जन की इस दौड़ में जैनों ने भी कभी अपने आप को अन्यों से पीछे नहीं रखा। न केवल संख्या की दृष्टि से अपितु स्तर को दृष्टि से भी वे अन्यों की तुलना में किसी भी प्रकार पीछे नहीं रहेंगे ऐसा हमारा विश्वास है। जयपुर के ऐसे ज्ञानोपासकों में से कुछ का परिचय विद्वान् लेखक ने यहाँ प्रस्तुत किया है। लेखक ने बखतराम शाह को गोधा गोत्रीय बताया है जो विचारणीय है । -पोल्याका जयपुर की प्रथम डेढ़ शती के जैन साहित्यकार .डा. ज्योतिप्रसाद जैन ज्योति निकुञ्ज, चार बाग, लखनऊ-1 विश्वप्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर वर्तमान में नवीन राज्य की स्थापना की। पं० भंवरलाल भारतीय संघ के राजस्थान राज्य की राजधानी है, न्यायतीर्थ की सूचनानुसार स्थानीय किंवदंती है कि और देशी राज्यों के संघ में विलयन के पूर्व लगभग ढुढाहर के इस कछवाहा राज्य का प्रथम नरेश सवा-दोसौ वर्ष पर्यन्त कछवाहा राजपूतों की सोढदेव था जिसने वि. सं. 1023 (सन् 966 ई.) राजधानी रही थी। कछवाहा वंश को उस कच्छप- में दौसा अपरनाम धवलगिरि को राजधानी बनाकर घट वंश की ही एक शाखा अनुमान किया जाता अपना राज्यारंभ किया तथा यह कि उसका दीवान है जिसका शासन 10वीं शती ई० के मध्य के निरभैराम छाबड़ा नाम का एक जैन था। इस लगभग से 12वीं के प्रायः मध्य पर्यन्त मध्य प्रदेश अनुश्रु ति में असंभव कुछ नहीं है, सिवाय इसके कि के ग्वालियर तथा नरवर में रहा था, तथा घटना की तिथि संदिग्ध लगती है-उसके समर्थन जिसके नरेश जैन धर्मावलम्बी थे, जैसा कि में कोई पुष्ट प्रमाण है या नहीं, यह हमें ज्ञात नहीं उक्त क्षेत्र में उपलब्ध उनके शिलालेखों से प्रगट है। कहा जाता है कि कुछ समय बाद दौसा का है। ऐसा प्रतीत होता है कि 12वीं या त्याग करके खोह को, फिर रामगढ़ को और अन्त 13वीं शती ई० में किसी समय उसी वंश की एक में आमेर को राजधानी बनाया गया। किन्तु 16वीं शाखा ने पूर्वोत्तर राजस्थान के ढुढाहर (ढुढार या शती के मध्य पर्यन्त आमेर (या अम्बर) के ये ढ़ ढाड) प्रदेश के एक भाग पर अधिकार करके एक कछवाहे राजे अपेक्षाकृत गौण स्थिति के रहे। इस महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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