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________________ लिये और लाल चोल ध्वजा पताका निशान प्रादि यह मेला एक श्रावक द्वारा अछूत के साथ बनाने के लिये मंगाये गये थे। 200 चांदी के छत्र भोजन करने के प्रायश्चित स्वरूप लगाया गया था । झालरी सहित नये घड़े मंगाये थे। बाग बगीचे भट्रारक देवेन्द्रकीर्तिजी ने यह व्यवस्था दी थी। तथा पुष्प वाटिकायें बनाने के लिये 30 गड्डी उस समय भट्टारकजी का काफी दबदबा था और बारीक रंगीन कागज और तीस मण रद्दी कागज उनकी व्यवस्था मान्य होती थी। चारों मन्दिरों में का खर्चा हुआ था। इस मण्डल के ऊपर तनवाने तेरह द्वीप, अढाई द्वीप, समवसरण तथा सिद्ध चक्र हेतु सामियाना आगरे से मंगवाया गया था। इसके के मण्डल मंडवाये गये थे और पूर्णावसर पर रथ खड़े करने के लिये 200 प्रादमी लगे थे। मंडप के यात्रा निकाली गई थी । अपनी अपनी मान्यतानुसार एक एक तरफ 24, 24 दरवाजे बनाये गये थे। कलशाभिषेक हुए। किन्तु माल बीस पंथ आम्नाय कुल चारों तरफ 96 दरवाजे सजे धजे हए लगाये वाले मन्दिरों में ही हुई थी। तेरह पंथी मन्दिरों गये थे कि हाथी ऊपर चढ़े हए व्यक्ति आराम से में नहीं । पाटोदी के मन्दिर की माल कलकत्ता के भीतर प्रवेश कर सकें ऐसी व्यवस्था थी। यह सेठ श्री चुन्नीलाल ने 951 रुपयों में और शामियाना 20 गज की ऊंचाई का लगाया गया था चाकसू के मन्दिर की माल चौम् ग्राम के मंडप के चारों तरफ बड़े बडे दीवान राज दरवार निवासी श्री जयराम नामक श्रावक ने 651 रुपयों के लोग तथा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों के डेरे लगे हुए में पहनी । इसकी सानी का मेला लगना भी अब थे। इनके आगे चोतरफा दर्शकों के डेरे लगाये गये दूभर ही समझना चाहिए । इसका विस्तृत विवरण थे जो कि सैकड़ों कोसों की दूरी पार कर मेले में श्री मौलिक्यचन्द्र साह द्वारा फाल्गुन शुक्ला 5 शरीक हुए थे। लाखों स्त्री पुरुषों ने दस दिन तक सं. 1917 में रचित रथ यात्रा प्रभाव नामक इस मेले को बड़ी भक्ति भाव से देखा तथा जन संस्कृत ग्रंथ से लगता है जो मंदिर पाटोदी में है। भजन में योगदान दिया। गीत नृत्य वा दिन संगीत समात तीसरा मेला आमेर में कीर्ति स्तम्भ की की प्यारी ध्वनि मन को बलात हरतीर्थ पं० टोडरमल जी शास्त्र प्रवचन करते थे। गोमट्ट नशिया का 1920 में हुआ। यहां पर सिद्ध चक्र सारका स्वाध्याय था। और तीन लोक के मण्डल मण्डे थे। और भगवान नेमिनाथ के मन्दिर से तथा नशियां से रथ यात्रा जैन समाज में जैसा यह अपूर्व मेला हुआ कभी का प्रारम्भ दो रथों में हुआ था एक में भगवान नहीं हुआ। इसके पश्चात् दूसरा मेला चारों रथों नेमिनाथ और दूसरे में भगवान चन्द्रप्रभु विराजमार का माघ शुक्ल सप्तमी रविवार सम्वत 1917 में थे। भट्रारक देवेन्द्रकीति का यहां पर भी बड़ा हुा । मन्दिरजी पाटोदी और मन्दिरजी चाकसू के भारी बोलवाला था । सरकार ने उनको वस्त्र प्रदान दो रथ वीस पंथ प्राम्नाय के गौर बड़ा मन्दिर कर सम्मानित किया था तथा श्री जी की भी भेंट तथा वधीचन्द जी का मन्दिर ऐसे दो तेरह पंथ चढाई थी। अलवर से रथ आया था। यह मेला आम्नाय के रथ निकाले गये। चारों रशों की बारह दिन चला था जिसमें भजन संगीत नृत्य के अद्भुत शोभा थी। दर्शकों की भीड़ ने जयपुर में अतिरिक्त नाटक भी हुया था। इसमें बाहर से अनोखा अवसर उपस्थित किया। शोभा यात्रा में बहत लोग मेला देखने आए थे। रथ आमेर से सरकारी लवाजमा तो था ही शहर में उपलब्ध नंदलाल हुकमचंद बज की नशियां होते हुए गंगा शोभा की सामग्री भी कम नहीं लगाई गई थी। दरवाजे से जयपुर नगर में प्रविष्ट होकर हवा जैन और जैनेतर सभी समाजों ने इन चारों रथों महल जौहरी बाजार में आए थे । तत्कालीन नरेश के मेले को देख कर अपना जन्म सफल किया था। रामसिंहजी ने एक आदेश द्वारा पूर्ण सहयोग दिया महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-111 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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