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________________ - - - मनुष्य जब होश संभालता है यह चिन्तामों से घिरा रहता है। कभी धनोपार्जन की चिन्ता, कभी अपने स्वास्थ्य की चिन्ता, कभी परिवार की, कभी किसी के विवाह की तो कभी किसी को पढ़ाने की। जब कभी भी उसे इन चिन्ताओं से छुटकारा प्राप्ति का अवसर प्राप्त होता है वह सुख शांति का अनुभव करता है। चारों ओर दुःखों से घिरे हुए मानव को मेले मनोरंजन का साधन उपलका करते हैं। वे हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं और समाज के लोगों को मिल बैठकर हंसी खशी के कुछ क्षस विताने का अवसर प्रदान करते हैं। हाके सावधानिक अनुष्ठानादि के कार्यक्रम तो श्रद्धालु जनों को शाकृष्ट करने के लिए आयोजित होते हैं। जैन समाज, जयपुर भी विभिन्न अवसरों पर ऐसे छोटे बड़े प्रायोजन करता ही रहता है । कभी कभी यह आयोजन अविस्मरणीय भी होते हैं। ऐसे ही तीन मेलों का संक्षिप्त परिचय विद्वान् लेखक ने इन पंक्तियों में दिया है। -पोल्याका - जयपुर के जैन मैले पं० गुलाबचन्दजी जैनदर्शनाचार्य प्राचार्य-श्री दि. जैन आचार्य सं. कालेज, जयपुर। जयपुर मेलों के लिये प्रसिद्ध है। यहां के प्रायः ये मेले पास पास के स्थानों पर लगते लिये कहा जाता है "सात बार और नौ त्योहार"। हैं जैसे-घाट, खानियां, गलता, आमेर, मोहन यहां किसी न किसी प्रसंग को लेकर मेले हया ही बाड़ी, सांगानेर, कूकस, खोह, बगराणा, दैलास, करते हैं। क्या जैन और क्या अजैन सभी इनमें साइबाड़, वावड़ी, (जगों की बावड़ी) नींदड़, वैनाड़, भाग लेते हैं। स्त्री पुरुष, बच्चे वृद्ध, यूयक शिशु भाखरोटा, पदमपुरा, श्री महावीरजी, गोनेर, सभी मेले के शौकीन हैं। चारों वर्गों के लोग डिग्गी, चाकसू (शीलकी) इत्यादि। इनमें कुछ अपने अपने पृथक पृथक मेले मनाते हों ऐसी ही स्थान तो ऐसे हैं जहां विशेषतः जैन ही जाते हैं प्रथा नहीं है। यहां तो सभी वर्ग व जाति वाले और कुछ ऐसे हैं जहाँ इतर समाज ही जाती है अपने अपने ढंग से सामूहिक मेले मनाते आये हैं। जैन नहीं जाते किन्तु कुछ ऐसे हैं जहां सभी समाज के नर नारी मेले का आनन्द लूटते हैं। पदमपुरा इन मेलों का प्रारम्भ श्रावण मास से होता का मेला जब से पद्म प्रभु की प्रतिमा और श्री है और विशेष तौर पर प्रासोज तक रहता है किन्तु महावीर जी का मेला जब से महाबीर जी की मल्प संख्या में । प्रतिमा निकली तब से लगता है, गोनेर में जगदीश के महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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