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________________ 1879 में लिखी पुस्तक के अनुसार जिनसेनजी भी रही होगी। उनके पश्चात् अन्य प्राचार्यों द्वारा खण्डेले गये और वहां उन्होंने सम्बत् 6 तक 14 सम्वत् 1110-12 तक नए जैनी बनाने का कार्य गोत्रों की स्थापना की और तत्पश्चात् स्वर्गवासी चालू रहा और नए नए गोत्र बांधे जाते रहे । हो गये। जिनका विवरण इसी पुस्तक में है तथा और भी ऐतिहासिक घटनाए हैं जिन्हें यहां स्थानाभाव से प्रश्न यह रह जाता है कि इन वि. सं. 2-3 नहीं दिया जा रहा है। वंशावली में मुद्रण दोष प्रादि की संगति जिनसेनजी के साथ कैसे बैठे ? अथवा लिपि दोष से सम्वत् 110 छप गया है या ये संवत् यथार्थ में 901-902-903 आदि हैं लिखा गया है। और बोलने में इनको सम्वत् 1-2-3 आदि बोलते हैं । अाज भी सन् 1904 चार ही कहलाता है यह वंशावली लेखक के मामा श्री गेंदी और 1910 आदि को अन्त की दो संख्या जो हो लालजी साह एडवोकेट ने छपाई है जिसे देखकर तदनुसार कहते हैं जैसे 1910 संवत् या सन् को हमें सत्य जानने की प्रेरणा हुई । वे लेखक के मात्र 10 ही बोलेंगे और कभी कभी लिखेगे भी। पितृसम हैं । जो भी जैसा भी मैं प्राज हूँ उनके यह परिपाटी जैसे वर्तमान में है वैसे भूत काल में ही पाशीर्वाद और शुभकामनाओं का फल हे । 1. Thirty Decisive Battles of Jaipur by Thakur Narendra Singh, 1939 edition page 57. 2. ऐतिहासिक शोध संग्रह : रामवल्लभ सोमानी : जनवरी 1970 सं., पृ. 49 3. AJMER : Historical and Descriptive : by-SARDA Part II Chapter XVII (1941 edition) 4. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, द्वितीय भाग : परमानन्द शास्त्री पृष्ठ 181-182. जगत के जीव सब सम हैं किसी को कम नहीं लेखो, सभी को प्राण प्यारे हैं किसी पर गम नही फेंको, श्री महावीर स्वामी की अहिंसा ये बताती हैइन्हें कुछ दे नहीं सकते तो केवल प्यार से देखो। -'काका' बुन्देलखण्डी महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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