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________________ छोड़ दिया गया । बड़े बड़े विद्वानों ने यहां तक लिखने का साहस किया कि पुराने गुटकों इत्यादि में जो खण्डेलवाल जैनों की उत्पति आदि के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त होती है इतिहास से वह प्रमाणित नहीं होती श्रतः प्रविश्वसनीय तथा कपोलकल्पित है । हमारे पास सम्वत् 1879 के साल में लिखा 5.8 x 5.8 की साइज की सांगानेरी कागज पर लिखी हुई एक पुस्तक है जिसके प्रत्येक पृष्ठ में 16 पंक्तियां हैं । पृष्ठ के दोनों ओर 7" का हासिया छोड़ा गया है । कुल 15 पृष्ठ हैं जिसमें प्रतिम पृष्ठ का बांयी ओर का भाग खाली है । इस पृष्ठ पर काली स्याही गिर गई है फिर भी अक्षर पड़ने श्राते हैं । इसके खण्डेलवालों के उत्पत्ति सम्बन्धी प्रारम्भिक प्रश इस प्रकार हैं खडेल. 'श्री वीतरागाय नमः अथ चोरासी जाति लिखते 1 सहर खेडेलो खंडेलगिर चोहान "न्याति मैं आधी मैं तो खंडेलवाल व्रीह्मण।। आधी मै खंडेलवाल महाजन । ती प्राधी में खंडेलवाल महश्री || आधी मैं खडेलवाल श्रावक ती श्रावका को बोरो क ् छु । सहर खंडेलो खंडेलगिर चोहान राज करैति सहर कोस 22 का फेर में बसें ॥ अर कोडी धज कोट मै बाईस हजार बसे 22000 पर नो से देहरा जैन का 900 कस्म मलवाइ धकल हूवो अधिको । तब राजा पण्डितां नै बुलाइ बुझो जो दिखल कदि मिटै । तदि पंडिता कही बारा बरस ताई रहसी । तब राजा कही प्रजा "छीजि जासी । कोइ पुन्य को उपाय करौ तदि ब्राह्मण कही ज नरमेद जग्य करो || राजा कही कुरण वह || तदि ब्रामरण कही ज येक सो येक 101 श्रादमी होमिजे ॥ तदि होम की तयारी करि राखी सौदई जोग करि जती 500 नगन मुद्रा धार्या न ॥ जया को अखाडो बाग मे श्राइ उतरी । तदि पंडितां राजा का बीना हूकम एक सोयेक 101 जती होया ।। तदि पाप करि सहर मैं मलवाइ घरणी हुई। गरीब धरणा छीज्या । सतरा 2-68 Jain Education International हजार तो 17000 कोडी धज मुवात्या को पाली देवो न रहौ ॥ तत्र भाग नगर सु भटारक अपराजित पदांकित नामा जसोभद्रजी जिनसेनजी चेला ने वीदा कीयो । जो खंडेले घरणो पाप हूवो || सहर खाली हंसी सो थे जाय पाप काटो सहर बचै || सो जिनसेनजी आदिपुराण का करता है । सो श्री भटारकजी का भेज्या जिन सेनजी खंडेले प्राय्या || सो म्हाजन सहर का छा त्याने जुदो ही गुढ़ौ करि दे श्रर देवी चक्रेश्वरी प्राराधि कार रछ्या दीनी ॥ यों करि जती म्हाजन छा सो सारा बच्या येता ही में खंडेलगिर चोहाण राजा छोती कै गोल नीकली || राजा मरवा समान हूवो || तब राजलोक रणवास छो त्या घरो ही जतन कीयो सो न लाग्यो | तब राजा ने जती नखे म्हाजना का गुढा में ले गया || सो जती को दरसरण करता ही नीका हूवो || सावधान हूवो ॥ अर जती न राजा बुझी जो येती प्रजा छीजी सो सबब काई तब जिनसेनजी कही जो जतीश्वा को होम हूवो छौतीको सारो बोरो कहाँ || जो पंडिता करि जग में मोटो पा हूवो मे राजा जाणो नहीं ॥ ती करि येतो सहर में दखल हूवो || तब राजा कही ग्रब असो उपदेस दो ती करि म्हारो पार कटै र सहर बसतो होय ॥ तत्र राजा ने जिनसेनजी जैन उपदेस दीयो राजा कबूलि कीयो राजपूत राह छोडि जैन राह पकड़ी जैनी हुवी र चौगडदा का प्रोर भाई बेटा 81 इक्याती गावाका स्वावद छा सो भी जैन राह पकड़ जैसी हूवा सो गावाक नाय गोत कहाय्या | खंडेला का धरणी साह हूबो श्रोर गाव का धरणी छा सो तिस तस पकड्या || चोहाण को राज छो सो गांव 81 मे रजपुत सरलाख 300000 धरम जैनी हूवा ॥ और जो चोहाण का भाई 14 ताकै जैवी हूवा ॥ गोत गह्या ताकि चक्रेश्वरी साहि करी ॥ सो चक्रेश्वरी कुलदेव्या भाई चोदा के हुई सौ महावीरजी सु. संवत 490 पार्छ जसोभद्र लघु सिष्य जिनसेनजी खंडेले प्राय जैनी कोया गोत्र महावीर जयन्ती स्मारिका 78 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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