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________________ मृत्यु के पश्चात् क्या घटित होता है यह एक रहस्य है । ब्रह्मवादी सबको ब्रह्म स्वरूप और ब्रह्म में लीन होना ही प्राप्य समझते हैं तो कुछ इसे बहा और माया के खेल मानते हैं । कोई प्रात्मस्वरूप की प्राप्ति को ही अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं। कोई इस सृष्टि का नियन्ता ईश्वर को भानते हैं तो कोई उसका खण्डन करते हैं । फलस्वरूप सबके रहस्य अलगअलग हैं किन्तु इस अनेकता में भी एक अद्भुत एकता है । सभी इस जन्ममरण के चक्कर से छूट मुक्तिलाम करना चाहते हैं। सभी मानव जन्म को दुर्लभ मानते हुए अपने इष्ट की प्राप्ति के प्रयत्न में इसे लगा देने की सलाह देते हैं । रहस्यवादी कवि प्रायः प्रत्येक सम्प्रदाय में हुए हैं। जैन कवि भी किसी हालत में उनसे पीछे नहीं हैं । किन्तु हिन्दी संसार के सामने आज भी उनका मूल्यांकन होना बाकी है । वास्तव में जैनों की अवस्था उस व्यक्ति की सी है जिसके पल्ले में लाल है मगर वह उसका मूल्य और महत्व नहीं जानता। -पोल्याका - सगुण भक्तों की रहस्यभावना ● डा० पुष्पलता जैन ए. ए. (हिन्दी व भाषा विज्ञान), Ph. D. न्यू एक्सटेन्सन एरिया सदर, नागपुर सगुण साधकों में मीरा, सूर और तुलसी का न कोई" अथवा "गिरधर से नवल ठाकूर मीरां सी नाम विशेष उल्लेखनीय है । मीरा का प्रेम नारी दासी" जैसे उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि उन्होंने सुलभ समर्पण की कोमल भावना गभित 'माधुर्य गिरधर कृष्ण को ही अपना परम साध्य और भाव' का है जिसमें अपने इष्टदेव की प्रियतम प्रियतम स्वीकार किया है । सूर, नन्ददास आदि के के रूप में उपासना की जाती है। उनका कोई समान उन्हें किसी राधा की आवश्यकता नहीं सम्प्रदाय विशेष नहीं, वे तो मात्र भक्ति की साकार हुई । वे स्वयं राधा बनकर प्रात्मसमर्पण करती हुई भावना की प्रतीक हैं, जिसमें चिरन्तन प्रियतम के दिखाई देती हैं। इसलिए मीरा की प्रेमाभक्ति पाने के लिए मधुर प्राय का मार्मिक स्पन्दन पराभक्ति है जहां सारी इच्छायें मात्र प्रियतम हा है। "म्हारो तो गिरधर गोपाल और दूसरा गिरधर में केन्द्रित हैं । सख्यभाव को छोड़कर नवधा बहाबीर जयन्ती स्मारिका 78 2-59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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