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________________ बाद ही मृत्यु को प्राप्त होने लगे। इस अजूबे से इन सबमें नाभिराय से हम सब विशेष रूप से जनता भयभीत हुई तो कुलकर चक्षुष्मान ने उन्हें परिचित हैं । उनका नाम वैदिक और श्रमण दोनों प्राश्वस्त किया। परम्पराओं के ग्रन्थों में समान रूप से प्राप्त होता है। वे अत्यधिक प्रतापशाली थे। उनके नाम पर समय बीतता गया और माता-पिता सन्ता- इस देश को अजनाभवर्ष कहते थे। 'शाश्वत कोष' नोत्पति के बाद, कुछ अधिक काल तक जीवित में लिखा है "प्राण्यंगे छत्रिये नाभिः प्रधाननृप. रहने लगे। इससे जन-मानस शंकाकुल हो उठा। तावपि". अर्थात जिस प्रकार प्राणी के अगों यशस्वान कुलकर ने उन्हें उपदेश दिया और वे में नाभि मुख्य होती है, इसी प्रकार मब राजाओं लोग अपनी संतान को आशीर्वाद देने लगे। में नाभिराज मुख्य थे। 'मेदिनी कोष में इसका अर्थात् यशस्वान् ने उन्हें प्राशीर्वाद देना सिखाया। समर्थन मिलता है, "नाभि नुख्यनृपे चक्रमध्यकलकर अभिचन्द्र ने इसमें वृद्धि की। उन्होंने क्षत्रिययोरपि''4 इसका अर्थ है कि चक्र के मध्य माता-पिता को बालकों के लालन-पालन का ढंग में जिस प्रकार नाभि कीली) मुख्य होती है, इसी बताया। अतः वे बालकों को चन्द्रमा दिखला- प्रकार क्षत्रिय राजाओं में नाभि मुख्य थे। दिखला कर, उनके साथ क्रीड़ा करने लगे । चन्द्राभ भागवत कार ने नाभि के नाम पर इस देश के कलकर के काल में माता-पिता अपनी सन्तान के नामकरण की बात कही है, "अजनाभं नामैतवर्षसाथ कुछ अधिक समय तक जीवित रहने लगे भारतमिति यत् आरभ्य व्यपदिशन्ति ।' 5 अर्थात और सन्तान-सुख का अनुभव भी करने लगे। इस देश का नाम पहले अजनाभवर्ष था, किन्तु चक्रवर्ती भरत के नाम पर इसे भारतवर्ष कहने ___ मरुद्दे व कुलकर के समय में वर्षा होनी लगे। स्कन्दपुराण में भी “हिमाद्रिजलधेरन्त - प्रारम्भ हो गई, नदियां बन गई और कुछ पर्वत भिखण्डमिति स्मृतम् ।" आया है । इस पंक्ति को भी निकल आये । तब उन्होंने जल-संतरण प्राधार बनाकर डॉ० अवधबिहारीलाल अवस्थी के लिए नाव और पर्वतारोहण के लिए सीढ़ियों ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'प्राचीन भारत का भौगोलिक का प्राविष्कार किया तथा जनता को उसमें दक्ष इतिहास' में लिखा है, "जम्बूद्वीप के नौ वर्षों में से बनाया। हिमालय और समुद्र के बीच में स्थित भूखण्ड को काल-क्रम से प्रसेनजित के काल में बालक प्राग्नीध्र के पुत्र नाभि के नाम पर ही नाभिखण्ड जरायू में लिपटे हुए उत्पन्न होने लगे, तब उन्होंने कहा गया ।"' नाभि का दूसरा नाम अजनाभ था. जरायू को फाड़ने की विधि बतलाई । नाभिराय इसी कारण उसे अजनाभवर्ष भी कहते थे। कुलकर के समय में, उत्पन्न होते समय बालक की डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने 'मार्कण्डेयपुराण: नाभि में नाल दिखाई देने लगा। उन्होंने नाल सांस्कृतिक अध्ययन' के एक पाद-टिप्पण में लिखा काटने की विधि सिखाई, इसीलिये वे नाभिराय है, “नाभि को अजनाभ भी कहते थे, जो अत्यन्त कहलाये । महापुराण में लिखा है : “तस्य काले प्रतापी थे और जिनके नाम पर यह देश सुतोत्पत्तौ नाभिनालमदृश्यत् । स तन्निकत नोपाय- अजनाभवर्ष कहलाता था।"8 मादिशन्नाभिरित्यभूत् ॥इस प्रकार चौदह ही कलकरों ने अपने-अपने काल में जनोपयोगी कार्य नाभिराय का युग एक संक्रान्तिकाल था। किये। जब वे सिंहासन पर बैठे भारत भोगभूमि थी। महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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