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________________ जैन जिस प्रकार मानते हैं कि यह अवसर्पिणी चक्र का पांचवा श्रारा है अर्थात् मानव शरीर, बल, श्रायु आदि की दृष्टि से धीरे धीरे हास की ओर जा रहा है, धार्मिक दृष्टि से भी धीरे धीरे उसका पतन हो रहा है। उसी प्रकार वैदिक संस्कृति में भी यह कहा जाता है कि यह कलिकाल है, और प्रत्येक दृष्टि से मावन पतनोन्मुख है। दोनों में भेद मात्र यह है कि जहां जैन हासोन्मुख काल के छह भाग करते हें वहां वैदिक सत्, त्रेता, द्वापर एवं कलि, ये चार ही भाग करते हैं । प्रस्तु, जैनों द्वारा मान्य मानवसभ्यता के विकास की कहानी वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण अधिक है । इतिहास की दृष्टि से भी दोनों ही संस्कृतियों की पौराणिक काल की घटनाए बहुत कुछ मिलती हैं तो इसमें श्राश्चर्य क्या है क्योंकि दोनों एक ही धरा पर साथ साथ पल्लवित हुई हैं। इतिहास के प्रादि काल से लेकर श्राज तक श्रमण सभ्यता और संस्कृति के विकास की कहानी श्राप इस खोजपूर्ण लेख में पढ़िये और देखिये कि श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृति से भी किस प्रकार प्राचीनतर है और दोनों ने ही एक दूसरे से क्या और कितना लिया दिया है । - पोल्याका कुलकर और श्रमरण संस्कृति यद्यपि काल एक और अखण्ड है, किन्तु व्यावहारिक सुविधा के लिए उसको घण्टा-मिनट सैकिण्ड, दिन-रात, मास-वर्ष और अयन - संवत्सर आदि में विभक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त आचार्यों ने एक दूसरी दृष्टि से भी काल का विभाजन किया है उत्सर्पिणी और अवसरणी । एक समय ऐसा प्राता है, जब जगत सतत उन्नति की ओर ही अग्रसर होता है और एक समय वह होता है, जब वह अवनति की प्रोर दुलकता महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International डा० प्रेमसागर जैन अध्यक्ष हिन्दी विभाग, दि० जैन कॉलेज, बड़ौत जाता है । इस दृष्टि से एक को उत्सर्पिणी काल और दूसरे को अवसर्पिणी काल कहते हैं । एक में मनुष्यों का बल, आयु, शरीर का प्रमाण और सुख-सुविधा बढ़ती है, तो दूसरे में घटती है । यह काल-चक्र घड़ी के समान होता है। जैसे घड़ी की सुई छः तक नीचे की ओर फिर छः तक ऊपर की ओर चलती है, इसी भांति दोनों काल -- सुषमा- सुषमा, सुषमा, सुषमा-दुषमा, दुषमा- सुषमा, दुषमा और दुषमा-दुषमा के छः-छः चत्रों में For Private & Personal Use Only 2-41 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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