SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के पांच वसु थे जिन्होंने हत्थिपुर ( हस्तिनापुर ) पुत्र अस्सपुर (रंग जनपद, सीहपुर (लाल राष्ट्र में, उत्तरी पंजाब में भी ), उत्तर पंचाल और दद्दपुर (हिमवन्त प्रदेश ) नामक पांच नगर बसाये । चेतिय जातक के समान महाभारत में वसु के पांच पुत्र बताये गये हैं जो महापराक्रमी और प्रोजस्वी थे । राजा ने विभिन्न राज्यों में अपने पुत्रों को अभिषिक्त कर दिया। इन पुत्रों में वृहद्रथ मगध का महाप्रतापी राजा हुआ। दूसरे पुत्र का नाम प्रत्यग्रह, तीसरे का कुशाम्ब (मरिणवाहन), चौथे का मल्ल और पांचवे का यदु था। ऐसा प्रतीत होता है कि चेदियों की एक शाखा कलिंग में बस गयी जिसका उल्लेख खारवेल अपने अभिलेख में करता है । खारवेल खारवेल के प्रारम्भिक जीवन पर विचार करने से पहले 'खारवेल' शब्द का अर्थ जान लेना ग्रावश्यक है । डा०जायसवाल 27 का कथन है कि खारवेल खार + वेल शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है खारी लहरों वाला अर्थात् समुद्र । डा० सुनीतिकुमार चटर्जी खारवेल के स्थान पर काड़- विल्व पाठ अधिक उपयुक्त मानते हैं । 'काड़ - विल्व' का अर्थ है काला भाला धारण करने वाला' । डा० सरकार उपर्युक्त मत को अस्वीकार करते हुए कहते हैं कि क्षार + वेल का तात्पर्य समुद्री तट पर शासन करने वाला है । हाथीगुम्फा अभिलेख की पहली और दूसरी पंक्ति में खारवेल के बाल्यकाल का वर्णन इस प्रकार किया गया है - 'पसथ - सुभ- लखनेन चतुरंतलुठण - गुण- उपितेन x x x सीरि कडार - सरीर-वता कीडिता कुमार कीडिका ।' पसथ शुभ लखनेन का अर्थ प्रशस्त और शुभ लक्षण वाला है । उक्त प्रशस्त और शुभ लक्षण भविष्यवक्ताओं और हस्तरेखा विशेषज्ञों के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं । बोधिसत्त्व के लक्षण संपत् देखकर दैवज्ञ ब्राह्मणों ने महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International भविष्यवाणी की थी कि 'ऐसे लक्षणों वाला पुरुष यदि गृहस्थ रहे, तो चक्रवर्ती राजा होता है; और प्रव्रजित होने पर बुद्ध | 30 हाथीगुम्फा अभिलेख में उसके लिये प्रयुक्त इस विशेषरण से ज्ञात होता है कि वह सर्वसत्ता सम्पन्न शासक था। उसकी प्रग्रमहिषि के लेख 31 में भी उसे कलिंग चक्रवर्ती कहा गया है। प्रतीत होता है कि बोधिसत्व के समान ही खारवेल के शुभ लक्षणों और चिह्नों को देखकर यह भविष्यवाणी कर दी गयी थी कि वह चक्रवर्ती शासक होगा । दूसरे पद चतुरंतलुठरण गुण उपितेन का अर्थ 'चतुरंत (चतुर्दिक) व्याप्त गुणों वाला' है । अर्थशास्त्र " से ज्ञात होता है कि चतुरंत का तात्पर्य 'समुद्र-क्षिति' है । बौद्ध साहित्य से प्रकट होता हैं कि चारों समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी की धर्म विजय करने वाला शासक चक्रवर्ती कहलाता है । पालि साहित्य में चक्रवर्तियों के तीन प्रकार बताये गये हैं- ( 1 ) चक्रवाल चक्रवर्ती (चारों महाद्वीपों का शासक ), ( 2 ) द्वीप - चक्रवर्ती ( एक द्वीप का शासक) और (3) प्रदेश चक्रवर्ती ( एक द्वीप के कुछ (भाग का शासक ) । कौटिल्य 35 कहता है कि हिमालय से लेकर समुद्र पर्यन्त, पूर्व-पश्चिम दिशाओं में एक हजार योजन तक फैला हुआ और पूर्व - पश्चिम की सीमाओं के बीच का भू-भाग चक्रवर्ती क्षेत्र कहलाता है; अर्थात् इतनी पृथ्वी पर शासन करने वाला राजा चक्रवर्ती होता है । राजशेखर का कथन है कि यह भारतवर्ष है । उसके नौ भेद हैं- 1. इन्द्रद्वीप, 2. कसेरुमान, 3. ताम्रप 4. गभस्तिमान् 5. नागद्वीप, 6 सौम्य, 7. गन्धर्व 8. वरुणद्वीप और 9. कुमारी द्वीप । इन नौ द्वीपों का पांच भाग जल और पाँच भाग स्थल है । इस प्रकार प्रत्येक द्वीप की सीमा एक सहस्र योजन है । वे दक्षिण से हिमालय तक फैले हुए हैं और परस्पर अगम्य हैं । इन सभी द्वीपों पर जो विजय प्राप्त करत For Private & Personal Use Only 2-19 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy