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________________ उपद्रव करने आते हैं और दोनों बुरी तरह परास्त बाद कृष्ण उग्रसेन को मथुरा के राज्य सिंहासन होते हैं । पनिहारिनें यशोदा को सारी बातें बताती पर स्थापित कर शौरिपुर जाने का निश्चय हैं । यशोदा दौड़कर पाती है और बालक के आहत करते हैं । होने की आशंका से उसे सहलाती है तथा बंधन खोल देती है । इसके बाद बालक कृष्ण अरिष्ट को पछाड़ते 'सूरसागर' में कंस, कृष्ण को बुलाने के लिए, हैं। उनकी कीर्ति समस्त गोकल में फैल जाती है। अक्रूर को भेजता है । कृष्ण के साथ केवल नन्द यशोदा को जब यह वात मालूम होती है, तब वह जाते हैं--यशोदा और दूसरी गोपियां नहीं जाती कुढ़कर सोचती है-यह मेरी कोख से बालक नहीं है। देवकाय, यानी कसवध होने के बाद भी जब राक्षस पैदा हना है लोग देखते ही रह जाते हैं और कृष्ण वृन्दावन लौटने को राजी नहीं होते, तब मेरा बालक अकेले संकटों से भिड जाता है ! और नन्द अकेले वापस चले जाते हैं। कृष्ण के बिना तब श्री कृष्ण को उठाकर घर ले जाती हैं । वर्षा में । उनकी वापसी पर यशोदा और गोपियों की गंभीर गोवर्धन पर्वत उठा लेने से कृष्ण की ख्याति दिगन्त प्रतिक्रिया होती है। बाद में, कृष्ण अपना कुशलप्रसारी हो जाती है । कृष्ण को मथुरा बुलाने के सन्देश देने के लिए उद्धव को गोकुल भेजते हैं । व्याज से कंस अपनी कन्या के स्वयंवर का ठाट । ___ उद्धव से निर्गुण-साधना का उपदेश सुनकर रचता है (जन कथा--परम्परा में ममेरी बहन से गोपियों को गहरा आघात पहुंचाता है। वे उसका विवाह का प्रचलन प्रचुरता से मिलता हैं ।) स्वयं-- कठोर प्रत्याख्यान करती हैं और इस प्रकार सगुण प्रेमाभक्ति के समर्थन में उपालम्भ-प्रधान एक नवीन वर में जाने के लिए जरासन्ध के पुत्र भानु और पाख्यान-काव्य की सष्टि हो जाती है। पुष्पदन्त सुभानु के साथ कृष्ण भी हो लेते हैं। के कृष्ण काव्य में इस मधुमय प्रसंग का प्रभाव है । उनके अनुसार, कृष्ण के साथ ग्वालबाल और 'महापुराण' और 'सूरसागर'-दोनों के वर्णन नन्द-यशोदा भी मथुरा जाते हैं। शौरीपुर जाने के क्रम में प्रमुख और महत्त्वपूर्व वैभिन्न्य यह है कि पूर्व कृष्ण सबकी कामनाएं पूरी कर विदाई देते हैं पुष्पदन्त के कृष्ण जरासन्ध के पुत्र भानु-सुभानु के और नन्द-यशोदा के अविस्मरणीय उपकार को अनुसार बनकर जाते हैं, जहां वे कंस की कन्या के कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करते हुए कहते हैं : स्वयंवर की शर्तों को पूरा कर देते हैं। कंस अपने शत्र कृष्ण को पहचान लेता है और उनके ससैन्य . इय गोवीयण वयरणइं सुणंतु। . वध की योजना बनाता है। बलराम नन्द को इस कीलइ परमेसरु दर हसंतु ॥ बात की सूचना देते हैं । फलतः, नन्द सुरक्षा की सम्भासियउ मेल्लिवि गव्वभाउ । दृष्टि से गोकुल से अन्यत्र 'नन्दगोकुल' नाम की इह जम्महु महु तुहं ताय ताउ ।। बस्ती बसाते हैं । कंस वहां भी कृष्ण का पीछा परिपालिउ थगण-थरणेन जाई । नहीं छोड़ता है। वह कृष्ण के लिए, यमुना से बीसरमि न खणुमि जसोइमाइ॥ . कमल लाने का आदेश भेजता है । नन्द पर इसकी कइवय दियहिइं तहु जाहि ताम । गहरी प्रतिक्रिया होती है। कृष्ण न केवल कमल पडिवक्ख कुलक्खउ करमि जाम ।। तोड़ लाते हैं, प्रत्य त मुष्टिक और चाणूर के साथ कंस का भी काम तमाम कर देते हैं। आकाश से होने अर्थात्, इस प्रकार गोपियों की बातें सुनते वाली पुष्प वृष्टि के बीच कृष्ण का अपने कुल के और कुछ हंसते हुए 'परमेसरु' (कृष्ण परमेश्वर) उद्धारक-रूप में अभिनन्दन किया जाता है । इसके क्रीडा करते रहे, यानी मनोविनोद की स्थिति में महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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