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________________ महापुरुष किसी काल विशेष प्रथवा व्यक्ति या सम्प्रदाय विशेष के नहीं होते। वो सबको समान भाव से देखते हैं। उनके लिए कोई छोटा बड़ा नहीं होता । को किसी को कष्ट देना नहीं चाहते । भगवान् महावीर भी ऐसे महापुरुषों में से एक थे । यह स्मारिका उन ही भगवान् महावीर की जन्म जयन्ती पर प्रकाशित हो रही है । बड़े बड़े उत्सव भी इस समय हो रहे होंगे । लेखिका की दृष्टि में, जो कि सच है जयन्ती मनाना तब ही सार्थक हो सकता है जब कि हम उनके बताये मार्ग पर चलें, धर्म को जीवन में उतारें। प्र० सम्पादक भगवान् महावीर भगवान् महावीर हमारे 24वें एवं अन्तिम तीर्थङ्कर थे । वे तप प्रधान संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक हैं । भोगों से भरे हुये इस संसार में एक ऐसी स्थिति भी सम्भव है जिसमें मनुष्य का मन निरन्तर संयम और प्रकाश के सान्निध्य में रहता हो । इस सत्य की विश्वसनीय प्रयोगशाला भगवान् महावीर का जीवन है । Jain Education International * श्रीमती सुशीला बाकलीवाल, एम. ए., जयपुर है और जनता को सत्पथ दिखाता है । ऐसे ही थे हमारे भगवान् महावीर । भगवान् महावीर का युग विश्व के धार्मिक जगत् में एक प्रद्भुत क्रान्ति, तत्व-चिंतन एवं दार्शनिक विचार बाहुल्य का युग था । जब स्वार्थ की ग्राड में दुराचार, प्रत्याचार संसार में फैल जाता है, दीन-हीन निशक्त प्राणी निर्दयता की चक्की में पिसने लगते हैं रक्षक जन ही उसके भक्षक बन जाते हैं | स्वार्थी दयाहीन मानव धर्म की धारा धर्म की प्रोर मोड देता है । दीनअसहाय प्राणियों की करुण पुकार जब कोई नहीं सुनता, तब प्रकृति का करुण स्रोत बहने लगता है । वह ऐसा पराक्रमी साहसी वीर ला खड़ा करती है जो प्रत्याचारियों के अत्याचार को मिटा देता है, दीन दुःखी प्राणियों का संकट दूर करता महावीर जयन्ती स्मारिका 77 1 में भगवान् महावीर क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के पुत्र थे । वैशाली जनपद के मुख्य नगर कुण्डग्राम उनका जन्म हुआ था । प्रापकी माता का नाम त्रिशला देवी था । एक सर्वसाधन सम्पन्न राजकुल में सांसारिक वैभव के मध्य जन्म ग्रहण करने के उपरान्त भी बालक महावीर का मन भौतिकता के प्रति नितान्त विरक्त रहा । श्राप बाल ब्रह्मचारी थे और तीस वर्ष की अवस्था में ही श्रापने संन्यास धारण कर बारह वर्ष तक कठोर तपस्या कर जंगलों में भटकते हुए अपने कर्मों का क्षय किया, इन्द्रियों को वश में किया और 42 वर्ष की श्रवस्था में केवलज्ञान प्राप्त कर सच्चे सुख की प्राप्ति की। तत्पश्चात् जनता को अपने उपदेश | मृत से प्लावित करते हुये लोगों को सही राह दिखाते हुये तत्कालीन कुरीतियों का एवं ब्राह्मणवाद का घोर विरोध करते हुए विहार करते रहे। महावीर के हिंसावादी उपदेशों ने प्राणिमात्र को अमानुषिक अत्याचारों से सान्त्वना ही नहीं दी, बरन उनके For Private & Personal Use Only 1-23 www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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