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________________ निर्धारण कल्याणक : अन्तिम समय प्रभु योग-निरोध द्वारा ध्यान में निश्चलता कर चार श्रघातिया कर्मों का भी नाश कर देते हैं और निर्वाण को प्राप्त होते हैं । देवगण निर्वाण कल्याणक की पूजा अर्चना करते हैं । प्रभु का शरीर कपूर की नाईं उड़ जाता है । इन्द्र उस स्थान पर प्रभु के लक्षणों से युक्त सिद्धशिला का निर्माण करता है | उन जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के भी पच कल्याणक प्रसिद्ध हैं । सभी कल्याणकों में उपर्यङ्कित विशेषतायें परिलक्षित हैं। जैन भक्त्यात्मक लोक में महावीर पूजन में इन कल्याणकों को नित्य गाया दुहराया जाता है | हिन्दी कवि वृन्दावनदास विरचित महावीर पूजन के आधार पर उनके कल्याणकों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे । टप्पाराग में कवि ने गर्भकल्याणक में स्पष्ट लिखा है कि भषाढ़ शुक्ला षष्ठी को महारानी त्रिशला के उर में प्रभु ने गर्भ धारण किया जिसकी सुरपतियों द्वारा सर्व प्रकार से सेवा सुश्रूषा सम्पन्न हुई । यथा : "गरम साढ सित छट्ट लियो तिथि, त्रिशला उर मघ हरना । सुर-सुरपति तितसेव करी नित, मैं पूजों भव तरना ।। " चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को प्रभु वर्द्धमान ने कुण्डलपुर नगर में जन्म लिया । जन्मोत्सव को देवी-देवताओं के अतिरिक्त मनीषी मुनिजनों द्वारा पूजा-अर्चना की गयी । यथा : महावीर जयन्ती स्मारिका 17 Jain Education International "जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कन वरना । सुरगिर सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भय हरना ॥" मार्गशीर्ष कृष्णादशमी को प्रभु ने तपश्चरण सम्पन्न किया मौर राजा के यहां पारणा प्राप्त की । इस घटना को लोक में पूजा जाने लगा । यथा : "मँसिर प्रसित मनोहर दशमी, ता दिन तप श्राचरना । नृप कुमार घर पारण कीनों, मैं पूजों तुम चरना ||" वैशाख शुक्ला दशमी को प्रभु द्वारा चार घातिया कर्मों का क्षय करके ज्ञान कल्याणक प्राप्त करना उल्लेखित है । केवल ज्ञान के बलबूते पर भव-भव के संकटों का समापन हो जाता है । यथा : " शुकल दर्श वैशाख दिवस प्ररि, घात चसुक छ्य करना । केवल लहि भवि भवसर तारे, जजों चरन सुख भरना ॥ " पंचम कल्याणक कार्तिक कृष्णा श्रमावस्या को सम्पन्न हुआ जिसमें प्रभु महावीर ने अपने पूर्ण कर्मों का क्षय करके आवागमन से मुक्ति पावापुर में प्राप्त की है । यथा : "कातिक श्याम श्रमावस शिवतिय पावापुरतें वरना | -8×8 गनफनि वृद मैं पूजो भय हरना ।" जजेतित बहुविध ये पंच कल्याणक हमारी जीवन चर्या को प्रक्षालन करने के लिए महनीय काम करते हैं । इसीलिए इनका नित्य चिन्तवन भक्तजनों द्वारा जिन मंदिरों में सम्पन्न किया जाता है। For Private & Personal Use Only 1-21 www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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