SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NEEDEDEDDED - प्रकाशकीय KEDDEDEEDED यदि जयपुर की सक्रिय सामाजिक संस्थाओं की गणना की जाय तो उसमें सर्वप्रथम जो नाम आवेगा वह है-राजस्थान जैन सभा । यह अपने जीवन के 25 वर्ष पूर्ण कर रही है । इस सुदीर्घ काल में उसने समाज हित के जो कार्य अब तक किये हैं उनका लेखा-जोखा आपको स्मारिका के इन ही पृष्ठों में अन्यत्र पढ़ने को मिलेगा। जैन साहित्य का प्रचार-प्रसार भी सभा की प्रमुख गतिविधियों में से एक है । अन्य ट्रेक्टों और पुस्तिकाओं के प्रकाशन के अतिरिक्त भ० महावीर के उपदेशों के प्रचार-प्रसार तथा जैन दर्शन, साहित्य, इतिहास, संस्कृति, कला मादि से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी जैनाजैन जनता को उपलब्ध कराने हेतु सन् 1962 में स्व. पं. चैनसुखदासजी की सत्प्रेरणा और परामर्श से भ० महावीर की जयन्ती के पुण्यावसर पर एक स्मारिका के प्रकाशन का निर्णय लिया था जिसने नियमित प्रकाशन का रूप ले लिया है। अब तक स्मारिका के 13 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। 14 वां अक पाठकों के हाथ में है । पं० चैनसुखदासजी के स्वर्ग प्रयाण के पश्चात् इसका सम्पादन पं भंवरलालजी पोल्याका जैन दर्शनाचार्य करते प्रारहे हैं । आप इन दिनों गत कुछ वर्षों से अस्वस्थ रहते हैं फिर भी बिना किसी व्यवधान के गत वर्ष तक पाठ अंक प्रापने पाठकों तक पहुंचाए हैं और उनके सम्पादन काल का यह 9 वां प्रक पाठकों के हाथ में है। प्रतिवर्ष जो सैंकड़ों पत्र विद्वान् पाठकों के हमें प्राप्त होते है उनसे स्पष्ट है कि उनके सम्पादन काल में स्मारिका का पूर्व स्तर न केवल कायम रहा है अपितु उसमें कुछ वृद्धि ही हुई है। एतदर्थ मैं सभा की पोर से श्री पोल्याकाजी का अत्यन्त प्राभार प्रकट करता हूं। इसके अतिरिक्त वे लेखकगण भी हमारे प्रत्यधिक साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने अपनी रचनाएं स्मारिका में प्रकाशनार्थ भेजीं। स्थानाभाव से कुछ रचनाएं स्मारिका में स्थान नहीं पा सकीं इसका खेद है। बिना अर्थ के किसी भी प्रकार का प्रकाशन कार्य सम्भव नहीं है। स्मारिका की अर्थ व्यवस्था सभा द्वारा विज्ञापनों के माध्यम से की जाती है। एतदर्थ एक समिति का निर्माण किया जाता है । इस समिति के सदस्य समाज के अन्य प्रमुख कर्मठ कार्यकर्ताओं के सहयोग से स्थान स्थान पर सम्पर्क कर विज्ञापन प्राप्त करते है । इस वर्ष इस कार्य का संयोजन श्री रमेशचन्दजी गंगवाल एवं ( xiii ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy