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________________ कि स्मारिका के कम से कम 60 पृष्ठों में प्राती । हम उसके कुछ अंशों का प्रकाशन करना चाहते थे मगर आदरणीय लेखक को यह स्वीकार नहीं था। वे इस सम्बन्ध में सभा को अपनी ओर से कुछ प्रार्थिक सहयोग देने को भी प्रस्तुत थे । किन्तु हमारी और सभा की कुछ मजबूरियां, कुछ कठिनाइयां थीं। हमें वास्तव में खेद है कि उनका श्राग्रह स्वीकार करने में असमर्थ रहे । विनम्रता पूर्वक हम उनसे क्षमायाचना करते हैं। स्मारिका का कलेवर भी परिस्थितियों वश छोटा करना पड़ा है। स्मारिका सम्पादन में मेरे सहयोगी श्री पदमचंद साहू का जो सहयोग और परामर्श समयसमय पर मुझे मिला उसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूँ । पत्रकारिता पर उन्होंने उपाधि प्राप्त की है तथा इस क्षेत्र में उनका सक्रिय प्रनुभव भी है। मेरे अन्य सम्पादन सहयोगियों का भी मुझे पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त हुवा है उन सबका भी मैं ग्राभारी हूँ । राजस्थान जैन सभा प्रतिवर्ष मुझे स्मारिका के सम्पादन का भार प्रदान कर जनता के सम्मुख आने का जो अवसर प्रदान करती है एतदर्थ मैं कार्यकारिणी का प्राभार मानता हूं । विशेष रूप से श्री राजकुमारजी काला अध्यक्ष, श्री बाबूलालजी सेठी मंत्री एवं अन्य बन्धुनों ने जो सहयोग मुझे इस वर्ष प्रदान किया उसका धन्यवाद करने हेतु मैं अपने पास शब्दों का प्रभाव पाता हूँ । मं० मून लाइट प्रिंटर्स के मालिक तथा व्यवस्थापक श्री महावीरप्रसादजी जैन तथा वहां के कर्मचारियों ने भी स्मारिका समय पर निकालने हेतु जो श्रम किया उससे मैं परिचित हूँ । उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता । से सव ही धन्यवाद के पात्र हैं । स्मारिका के संबंध में एक बात और हमारे कुछ समीक्षक इसे शोध ग्रंथ के रूप में ही देखना चाहते हैं अतः उससे नीचे स्तर की रचनाएं उन्हें पसन्द नहीं प्रातों । स्मारिका प्रकाशन का उद्देश्य जैनधर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व श्रादि का प्रचार प्रसार करना है केवल शोध खोज तक अपने को सीमित रखना नहीं । समीक्षक हमारे इस उद्देश्य को अवश्य ही ध्यान में रखें क्योंकि उन्हें ऐसी रचनाएं भी इसमें मिल सकती हैं जो उस स्तर की न होकर भी स्मारिका के उद्देश्य की पूर्ति में सक्षम हैं । सम्पादन में बन पड़ी, त्रुटियों, भूलों तथा श्रसावधानियों के लिए सभी सम्बन्धित सज्जनों से क्षमायाचना पूर्वक - Jain Education International (xii) भंवरलाल पोल्याका प्रधान सम्पादक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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