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________________ एक का सिक्का दूसरे के द्वारा पुनर्मुद्रित किया गया है । " 4. लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित वृहस्पतिमित्र के सिक्के को पांचाल सिक्कों की श्रेणी बताया गया है 110 5 दिव्यावदान 11 की एक अनुश्र ुति में वृहस्पतिमित्र को प्रशोक के पौत्र सम्प्रति के उत्तराधिकारियों में से एक कहा गया है। 6. वृहस्पतिमित्र एक नवमित्र राजवंश का राजा था जिसने कण्वों के बाद शासन किया 132 4 डा० काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार खारवेल की राज्यारोहण तिथि 182 ई० पू० है । डा० जायसवाल का यह मत मूलतः पुष्यमित्र की वृहस्पतिमित्र के साथ की गयी पहचान पर प्राधारित है । उनके अनुसार वृहस्पति नक्षत्र का अधिपति पुष्य (तिष्य भी ) है । प्रत: वहसतिमित पुष्यमित्र का पर्यायवाची है । 13 डा० रमेशचन्द्र मजूमदार का कथन है कि हाथीगुम्फा अभिलेख मैं उल्लिखित बहसतिमितम या बहुपतिमितम को यदि शुद्ध पाठ मान लिया जाय तो पुष्यमित्र को वृहस्पतिमित्र या वृहस्पति कहा जा सकता, किन्तु पर्याप्त प्रामाणिक सामग्री के अभाव में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता । इस सन्दर्भ में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि दिव्यावदान 16 में वृहस्पति या पुष्यमित्र को अलग-अलग बताया गया है और पुष्यमित्र के विरोधी खारवेल की राजधानी राजगृह में स्थित बतायी गयी है 127 6 मोरा और पोसा अभिलेखों के वृहस्पतिमित्रों को एक मानकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है और उनका तादात्म्य मुद्राओं के वृहस्पतिमित्रों से स्थापित किया गया है। एलन 18 ने इस सन्दर्भ में गम्भीर प्रापत्ति करते हुए इसे असम्भव बताया है । प्रायः सभी विद्वान् इस तथ्य से सहमत हैं कि वृहस्पतिमित्र एक नवमित्र राजवंश का शासक था । इस सन्दर्भ में डा० राय चौधरी का कथन है कि "ई० सन् के प्रारम्भ होने के पूर्व की शताब्दी में संभवतः मगध तथा समीपवर्ती भूभागों पर मित्रवंशों का शासन था। जैन ग्रन्थों में बलमित्र और भानुमित्र राजानों का पुष्यमित्र का उत्तराधिकारी कहा गया है। इससे मित्रवंश के शासन का अस्तित्व प्रमाणित होता है । डा० बरूना ने मित्र राजानों की एक सूची तैयार की है। इस सूची में वृहस्पतिमित्र, इन्द्राग्निमित्र, ब्रह्ममित्र, वृहस्पतिमित्र, विष्णुमित्र, वरूणमित्र, धर्ममित्र तथा गोमित्र राजाओं के नाम मिलते हैं । इनमें से इन्द्राग्निमित्र, ब्रह्ममित्र तथा वृहस्पतिमित्र निश्चितरूप से मगध के राज्य से सम्बन्धित थे । शेष कौशाम्बी पौर मथुरा से सम्बन्धित थे । किन्तु इससे यह पता नहीं चलता कि ये मित्रवंशी राजा लापस में या कण्व तथा शुंग वंशों से किस रूप में सम्बन्धित थे ।"19 डा० बरूया 20 उपर्युक्त मत का समर्थन करते हुए कहते है कि ई० पू० पहली शती के मध्य में कण्व शासन की समाप्ति के बाद मगध में नवमित्र वंश ने राज्य किया । इस वंश के इन्द्राग्निमित्र और ब्रह्ममित्र खारवेल के सम कालीन वृहस्पतिमित्र के पूर्वाधिकारी थे । अगर इसे ठीक माना जाये तो खारवेल की तिथि पहली शती ई० पू० के अन्तिम चरण (20 ई० पू० ) में मानी जा सकती है । पवनराज डिमित : अभिलेख की प्राठवीं पंक्ति में ' यवनराज डिमित' पाठ का अनुमान किया गया है। यहां पर कहा गया है कि खारवेल के राजगृह पर प्राक्रमरण करने के समाचार को सुनकर भयवश यूनानी महावीर जयन्ती स्मारिका 77 4-40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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