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________________ उसकी पूजा करके संतान प्राप्ति की लोक परम्परा दूसरी शती) के पश्चिमी तोरण के एक स्तम्भ पर की पुष्टि श्री चन्द के अपभ्रश कहाकोसु (11 वी लेख सहित 'सिरिमा देवता' का अंकन प्राप्त है। शती) से होती है। पुत्र-प्राप्ति प्रथवा सन्तान- डॉ० मोतीचन्द्र ने उस्मानाबाद के तेर स्थान से प्राप्ति के लिए मातृदेवी के रूप में पूजित इला देवी प्राप्त हाथीदांत पर उत्कीरण सिरिदेवी का उल्लेख की चर्चा भी माख्यानमणिकोश प्राकृत ग्रन्थ में भी किया है । देवगढ़ में भी श्रीदेवी का मातृदेवियों पायी है। के रूप में अंकन प्राप्त है। ___ इस प्रकार प्राकृत साहित्य में श्रीदेवी का पुरातत्वीय या मूर्तिकला में सिरिया श्री देवी स्वरूप मानवीय सौंदर्य के प्रतीक, एवं सन्तान अंकन बराबर मिलता रहा है। भरहुत (ई० पू० प्रदान करने वाली देवी के रूप में चचित है। संदर्भ: 1 तथा 2 : 'Shri' according to Mrs. Hartmaun appears as distinct female deity in the 'Vajasneyi-Samhita' for the first time. She was a pre Aryan goddess of fertility and other phenomena relating to it whose Symbol is the lotus-growing in the mud and stirne and whose cult, Mythology and Iconography show a variety of true characteristics of the deities concerned with fertility and prosperity in general, -Dr. Motichandra An-Ivory figure from Ter, Lulit Kala No. 8-Page one. 'इहिं सिरी विणेया' अंगविज्जा प्र. 51 पृ० 205, तथा 'सुवकेसु सिरिधर गतं ब्रूया' प्र० 57 पृ०2221 वसुदेवहिण्डी-डा० भोगीलाल जे० सांडेसरा का गुजराती पनुवाद । 'अस्थि देवस्स महाराय-स-प्पसूया पुव्व पुरिस-संरोज्झा रायसिरि भगवई कुल-देवया तं समाराहि पुत्त-वरं पत्थेसु'ति ।'-कुवलयमालाकहा-पृ० 13 पंक्ति 28-29। और 'तो सिरीए संलत्त' । 'नरवई वि लद्ध रायसिरि-वर-प्पसाम्रो विग्गयो देवहरयानो'पृ० 15 पंक्ति 9 तथा 151 विधेहितावन्मंत्रजपविधिमाराधितप्रसन्नया राजलक्ष्मया वितीर्णम् । प्राप्नोतु पुत्रवरमियम् । धनपाल कृत-तिलक-मंजरी पृ० 33 तथा- 'तत्र चातिप्रशस्तेऽहनि तथा योग्य माचित समस्त पूज्यवर्ग: परिपूर्णसर्वावयवां सर्वप्रतिमालक्षणपेतां सर्वालंकारभूषितवपुलंतां सर्वलोकनानन्दजननी सर्वदोष निमुक्तामत्युदारमुक्ताशैलदारु-संभवा भगवत्या श्रियः प्रतिकृति यथाविधि प्रतिष्ठाय ।'-पृ०33-341 'हिमवंतपोमदह वासिणीए सिरियादेवीए सुहासिणीए' श्रीचन्द्रकृत 'कहकोसू' संधि 48 कडवक 4 से 6 तक विस्तार से देखें। तत्थ इलादेवीए प्राययणं विज्जइ जणपसिद्ध। तं च जणो कज्जथी पुत्ताइनिमितमच्चे। पाख्यान मणिकोश पृ० 91 पंक्ति 6 तथा विस्तार से देखें मेरा लेख-मातृदेवी इलाः परम्परा और विकास। Dr. Motichandra : An Ivory figure from Ter, Lalit Kala No. 8, Page one. महावीर जयन्ती स्मारिका 17 2-27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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