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________________ 'पउम चरिय' के पूर्व 92-94 में सीता त्याग का विस्तृत वर्णन मिलता है । लंका से लौट माने के समय भी जनता के अपवाद की चर्चा मिलती है। श्रीराम स्वत: गर्भवती सीता को वन में विभिन्न जैन चैत्यालय दिखला रहे थे कि अयोध्या के अनेक नागरिक उनके पास आये और प्रभयदान पाकर उन्होंने अपने प्रागमन का निमित्त निरूपित किया। उनसे श्रीराम को सीता का अपवाद विदित होता है और वे अपने सेनापति कृतांतवदन को जिन-मंदिर दिखलाने के बहाने सीता को गंगा पार के वन में छोड़ पाने का प्रादेश देते हैं। संयोग से वन में पुण्डरीकपुर के नरेश वज्रजंघ ने सीता का करुण क्रन्दन सुन लिया जिस पर वह उन्हें अपने भवन ले पाया और उसके यहां सीता के दो पुत्र 'पद्मचरित' के छियान्नवे पर्व में सीता के ग्रहण स्वरूप दुष्परिणामों में प्रजा का मर्यादा विहीन स्वरूप और नारियों का हरण, प्रत्यावर्तन तथा उनकी स्वीकृति बतलायी गयी है। _ 'योगशास्त्र' (द्वादश शताब्दी) में सीता निर्वासन के तदनंतर एक घटना का वृतात मिलता है । तदनुसार श्रीराम अपनी भार्या के अन्वेषण में वन गए हुए थे किन्तु सीता कहीं नहीं मिल पायी। राम ने यह विचार करके कि सीता किसी हिंसक पशु द्वारा समाप्त हो चुकी है, प्रतएव, उन्होंने परावर्तित होकर सीता का श्राद्ध किया । (ख) धोबी का पाख्यान - जैन रामसाहित्य में इसकी चर्चा नहीं मिलती। (ग) रावण का चित्र-इस वृतान्त को प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम एवं प्राचीनतम श्रेय जैन-राम-साहित्य को है। - हरिभद्र सूरि के (अष्टम शताब्दी) उपदेश पद में सीता द्वारा रावण के चरणों के चित्र निर्मित करने का सूत्र मिलता है । टीकाकार पुनिच्चन्द्र सूरि (द्वादश शताब्दी) के कथनानुसार सीता ने अपनी ईाल सपत्नी के प्रोत्साहन से रावण के पैरों का चित्र बनाया था। इस पर सपत्नी ने राम को यह चित्र दिखला दिया और उन्होंने सीता का त्याग कर दिया। भद्रेश्वर की 'कहावली' (एकादश शताब्दी) में यह पाख्यान पाया है कि सीता के गर्भवती हो जाने पर ईर्ष्यालु तथा द्वेषमयी सपत्नियों के प्राग्रह पर सीता ने रावण के पैरों का चित्र निर्मित किया जिसे उन्होंने सीता द्वारा रावण के स्मरण के प्रमाण स्वरूप राम के समक्ष उपस्थित कर दिया। राम ने इसकी उपेक्षा कर दी। सौतों ने रावण चित्र का किस्सा दासियों के द्वारा जनता में फैला दिया। तत्पश्चात् राम गुप्तवेश धारण कर नगरोद्यान में गये जहां उन्होंने अपनी इस हेतु निंदा सुनी। गुप्तचरों ने भी लोकापवाद की चर्चा की। राम का निर्देश पाकर कृतांतवदन तीर्थयात्रा के बहाने सीता को वन में छोड़ पाया। उसके बाद राम ने लक्ष्मण एवं अन्य विद्याधरों के साथ विमान में चढ़कर सीतान्वेषण किया परन्तु उन्हें न पाकर यह समझ लिया कि वे किसी हिंसक जानवर का ग्रास बन गयी हैं। हेमचन्द्र के 'जैन रामायण' (द्वादश शताब्दी) में भी यही गाथा है। नागरिकों ने भी सीता के लोकापवाद की चर्चा की जिसे राम ने ठीक पाया। देवविजयगरिण के 'जैन रामायण' (सन् 1596) में नारियां राम से शिकायत करती हैं कि सीता रावण के चरणों की पूजा-अर्चना करती है महावीर जयन्ती स्मारिका 77 2-11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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