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________________ राजस्थान जहां अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है वहां कला की दृष्टि से भी वह किसी प्रान्त से पीछे नहीं है। जैन कला का विकास भी यहां अपनी चरम सीमा पर है । प्राबु और रणकपुर की जैन स्थापत्य कला विश्व प्रसिद्ध है । राजस्थ न को भू.पू रियासत तथा वर्तमान में जिला जैसलमेर का स्थापत्य भी इनसे बराबर की होड़ लेता है। यहां के लौद्रवा के जैन मंदिरों की कला अपने आप में अनुपम है। इस ही शिल्प का विस्तृत विवेचन चित्रों सहित सम्माननीय लेखक ने अपने इस निबन्ध में प्रस्तुत किया है। प्र. सम्पादक जैसलमेर का जैन शिल्प * श्री कुन्दन लाल जैन, प्रिन्सिपल, देहली जैसलमेर प्राचीन राजस्थान की एक प्रसिद्ध धानी पहले लौद्रव नगर थी जो यहां से लगभग रियासत थी जिसका रकवा लगभग 16062 मील 20 कि.मी. दूर है पर बाहरी माक्रमण से बचाने था। यह भारत के धुर उत्तरी पश्चिमी कोने में के लिए सुरक्षा की दृष्टि से सम्बत् 1212 में रावल पाकिस्तानी सीमा से लगा हुआ है। जैसलमेर जैसल (जयशाल) ने इस नगर को बसाया था और इस लाइन का पाखिरी रेल्वे स्टेशन है इससे मागे इस विशाल किले का निर्माण कराया था। इनकी रेल नहीं है, पाकिस्तानी सीमा यहां से लगभग मृत्यु सं. 1224 में हो गई थी। किले पर पहुंचने 100 कि.मी. दूर है । यद्यपि जैसलमेर एक साधा- के लिए बीच नगर में से जाना पड़ता है। किले में रगा सा नगर है पर यहां पुरातत्व, इतिहास, शिल्प प्रब भी प्राधी प्राबादी है और लोग दैनिक एवं कला से सम्बन्धित जो सामग्री बिखरी पड़ी है अावश्यकताओं की पूर्ति के लिए नीचे प्राते वह निश्चय ही जैसलमेर की प्रतिष्ठा में चार चांद रहते हैं। जड़ देती है । यह रतीला प्रदेश जो पानी के प्रभाव प्रमुख द्वार से आगे चलते ही भव्य राजमहल में सर्वथा सूखा सूखा सा प्रतीत होता है अपने कला, के दर्शन होते हैं। (चित्र 1 संलग्न) है जिसके वैभव और पुरातात्विक अवशेषों के कारण कला प्रस्तर खण्डों की कलापूर्ण कटाई खिड़कियों एवं पारखियों का विशेष अ.दरणीय बन गया है तथा जाली झरोखों की नक्कासी बड़ी ही मनोहारी रसगंगा सा सरस पास्वादन प्रदान करता है। लगती है। यहां महारावल लक्ष्मणजी महाराज के जैसलमेर स्टेशन पर उतरते ही दूर पहाड़ी पर राज्यकाल में जैनियों का बड़ा वर्चस्व था । वे जैन प्रवस्थित बादामी पत्थर का चमकता हुमा विशाल साधुनों के प्रति बड़े श्रद्धावान् थे । उन्हीं की कृपा किला दर्शकों का ध्यान बलात् ही अपनी पोर से यहां कई विशाल कलापूर्ण जैन मंदिरों का प्राकर्षित कर लेता है । जैसलमेर राज्य की राज. निर्माण हो सका जो पुरातत्व, शिल्प, इतिहास एवं महावीर जयन्ती स्मारिका 77 2-3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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