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________________ हैं । एक बार वे वटवृक्ष के नीचे पाठ राजकुमारों गम्भीरता के साथ पिता के समक्ष निवेदन कियाके साथ खेल रहे थे। इतने ही में सगम नामक "पिताश्री इस नश्वर जीवन को अमरत्व की देव ने उनकी परीक्षा लेने के विचार से भयंकर साधना में लगाना चाहता हूं। मैं प्रात्मकल्याण सर्ष उनके पास छोड़ा। उसे देख कर कुछ राज- करके मानव जीवन की सार्थकता सिद्ध करना कुमार तो भाग गए किन्तु वर्द्धमान प्रविजित भाव चाहता हूं।" माता-पिता के अनेक विध समझाने से डटे रहे। उन्होंने उस भयंकर सर्प को निडरता. पर भी विरक्त मन वाले राजकुमार का मन पूर्वक पकड़ कर दूसरी ओर छोड़ दिया। सगमदेव अनुरक्त न बन सका । कुछ समय बीतने पर राजने यह सब कुछ देख कर अपनी वास्तविकता को कुमार के समक्ष लोकान्तिक देव उपस्थित हुए। प्रकट कर उनकी स्तुति की और उन्हें सीधे कन्धे राजकुमार वर्द्धमान एकान्त में वीतराग भाव से पर बैठाकर आनन्दमग्न हो नाचने लगा। वर्द्धमान तत्वचिन्तन कर रहे थे। लौकान्तिक देवों ने उनसे कुमार बालपन से ही अतिर्वार एवं निर्भय थे । वे कहा-प्रभु, आप तो संसार के जीवों का उद्धार देवकुमार और राजकुमारों के साथ वटवृक्ष के करने के लिए उत्पन्न हुए हैं। आप तपश्चर्या के नीचे प्रामली क्रीडा किया करते थे। द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करें, कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान के द्वारा मोक्षपद के अधिकारी बनें। कुमार वर्द्धमान अत्यन्त मेघावी थे । एक बार राज कुमार को अपने जीवन के लक्ष्य की स्मृति प्रा संजयंत और विजयंत मुनि उनसे कुछ शंकानों का गई। देवताओं द्वारा लाई गई चंद्रप्रभा पालकी में समाधान प्राप्त करने पाए। कुमार वर्द्धमान झूले बैठकर वे ज्ञातखण्ड वन की और चल पडे । में झूल रहे थे। दोनों मुनियों की शंकाओं का उन्होंने ईसा पूर्व 569 सर्वधारी संवत्सर मगशिर निरसन उन्हें दूर से देखकर हो हो गया । वे मुनि ' कृष्णा 10 (दशमी) सोमवार को दिगम्बर मुनि द्वय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक वर्तमान दीक्षा लेकर निरावरण हो वन के शाल वृक्ष के का नाम सन्मति रखा। इस प्रकार अभिवृद्धि को। नीचे तपश्चर्या प्रारम्भ की। दो दिन पश्चात् उन्होंने प्राप्त होते हुए राजकुमार वर्तमान नन्द्यावर्त प्रथम पारणा (पाहार) कूल ग्राम राजा बकुल के राजप्रासाद में प्रायः एकान्त में ध्यानमग्न हो कर प्रासाद में किया। प्रात्मचिन्तन में लीन दिखाई पड़ते थे। प्रापकी छाया भी वनिता साध्वी चंदना को। जब वे पूर्ण यौवनावस्था को प्राप्त हुए तो सम्यक गुणगण गणनीय वर्द्धमान ।। उनका सुकोमल धवल शरीर कान्ति से जगमगा सहज लिया अनुद्दिष्ट पिण्ड दान में । उठा । कलिंग के राजा जितशत्रु ने अपनी त्रिलोकसुन्दरी सुपुत्री यशोदा के साथ राजकुमार वर्द्धमान यह नियम-यम शाश्वत परिपालित थे । के विवाह का प्रस्ताव रखा । पिता सिद्धार्थ ने बारह वर्ष का वह कठिन तपश्चर्या का जीवन, सुपुत्र वद्धमान को समझाया-राजकुमार अब तुम घोर वन और भयंकर उपसर्गों के बीच वह क्षीण पणं यवा हो गए हो। राजा जितशत्रु का प्रस्ताव कषायी तीर्थकर महावीर अविचलित बने रहे। वे स्वीकार करते हुए राजकुमारी यशोदा से विवाह सच्चे अर्थ में महावीर थे। उन्होंने अपना प्रथम करो और गृहस्थ जीवन में प्रवेश करो ताकि उपदेश (देशना) ईसा पूर्व 557, को विपुलाचल हमारी वंश-वृक्ष परम्परा निरन्तर गतिमान रहे। पर्वत पर दिया। उनकी वाणी केवलज्ञान होने के राजकुमार वर्तमान ने अत्यंत शालीनता एवं 66 दिन बाद प्रस्फुटित हुई, क्योकि उनकी धर्मसभा 1-72 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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