SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाश्चात्य जगत में अरस्तू के पूर्व यह मान्यता थी कि द्रव्य इन कारणों को एक दृष्टांत से समझा जा सकता है। वह निरपेक्ष सत्ता है जो अपने अस्तित्व एवं ज्ञान के लिए मिट्टी का घड़ा बनकर तैयार हुआ। यह एक कार्य है। यह किसी पर निर्भर नहीं है, वहीं अरस्तू ने द्रव्य की निरपेक्षता घड़ा मिट्टी से बना है, अतः मिट्टी घड़े का उपादान कारण है। को समाप्त कर द्रव्य एवं आकार को सापेक्ष माना है। उसके इस घड़े को बनाने में निमित्त कुंभकार बना, अतः कुंभकार अनुसार द्रव्य एवं आकार आपस में परिवर्तित होते रहते हैं, निमित्त कारण है। कुंभकार घड़ा बनाने के पूर्व घड़े का अर्थात् द्रव्य आकार में और आकार द्रव्य में बदलता रहता आकार अपने मस्तिष्क में बनाता है। यह स्वरूप कारण है है। उदाहरणार्थ लकड़ी द्रव्य है तथा मेज, कुर्सी आदि आकार और जिस घड़े को देखकर कुंभकार घड़ा बनाने के लिए हैं। पुनः लकड़ी आकार है तो वृक्ष द्रव्य और वृक्ष आकार है प्रेरित होता है वह अंतिम या लक्ष्य कारण है। इन चार तो बीज द्रव्य है। कारणों को वह (अरस्त) दो भागों में विभक्त करता हैउपर्युक्त मत से यह स्पष्ट होता है कि अरस्तू द्रव्य 1. द्रव्य, 2. आकार। उपादान कारण को ही वह एवं आकार को सापेक्ष ही मानता है। अरस्तू के द्रव्य एवं द्रव्य कहता है और अंतिम तीन कारणों को वह आकार के आकार की सापेक्षता के संदर्भ में बिलड्यूरांट ने लिखा अंतर्गत समाहित कर देता है। इस प्रकार चार कारण द्रव्य है-Every thing is both the form or reality which एवं आकार में समाहित होकर सापेक्ष हो जाते हैं।12 has grown out of something which was its सत् और असत् सापेक्ष हैं—पाश्चात्य दर्शन में जहां matter or raw material, and it may in its turn be the matter out of which still higher forms will शलवार दाशानका नसत् स जगत का उत्पात्त का स्वाकार grow. So the man is the form of which the child किया था, वहीं हेराक्लाइटल ने असत् से सत् जगत की was the matter. The child is the form and its उत्पत्ति को स्वीकार किया था। दोनों ही सिद्धांतों में विरोध embryo the matter. The embryo the form, the दृष्टिगोचर होता है। यदि जगत सत् से बना है तो जगत के Ovum the matter and so back till we reach in a परिवर्तन एवं विकास की व्याख्या कटस्थ नित्य सत से कैसे Vauge way the conception of matter without की जा सकती है और यदि जगत असत् से निर्मित है तो form at all. असत् अर्थात् अस्तित्वविहीन तत्त्व से जगत की व्याख्या अर्थात् प्रत्येक वस्तु में द्रव्य एवं आकार का वास है। कैसे की जा सकती है? इसका समाधान अरस्तू अपने दर्शन द्रव्य एवं आकार एक-दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। यदि में इस प्रकार देता है सत् और असत् परस्पर विरोधी नहीं आदमी आकार है तो द्रव्य बच्चा है और बच्चा आकार है औ हैं। उसके अनुसार दोनों सापेक्ष हैं। अरस्तू ने असत् के र तो भ्रूण द्रव्य है और भ्रूण आकार है तो रज (अन्य संदर्भ में लिए संभाव्यता (Potentiality) शब्द का और सत् के लिए अंडा) द्रव्य है। अतः वस्तु में एक ही समय में द्रव्य एवं वास्तविकता (Actuality) शब्द का प्रयोग किया है। इस आकार हैं, जबकि दोनों विरोधी हैं। द्रव्य निर्गुण है और प्रकार अरस्तू असत् का मतलब शून्य न मानकर संभाव्य आकार सगुण है। द्रव्य संभावना है और आकार मानता है। असत् से उत्पत्ति का मतलब शून्यता या अभाव वास्तविकता है। द्रव्य ह्रास का कारण है और आकार से उत्पत्ति नहीं अपितु संभाव्य से उत्पत्ति संभव है।" विकास का कारण है (Matter Obstructs and form constructs.)। आकार पूर्व में और पश्चात् में भी-अरस्तू के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत द्रव्य एवं आकार है। कारणता सापेक्ष है-अरस्तू के दर्शन में कारणता इनमें भी उसने आकार को विशेष महत्त्व दिया है और इसे सिद्धांत का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह चार प्रकार के विकास का सूचक बतलाया है। यों तो द्रव्य के परिवर्तन को कारणों को स्वीकार करता हुआ देखा जाता है।'' वे इस वह आकार मानता है। इस दृष्टि से आकार का अस्तित्व प्रकार हैं बाद में ही है। किंतु अरस्तू द्रव्य के पहले भी आकार के 1. भौतिक या उपादान कारण—(Material Cause) अस्तित्व को मानता है। चूंकि स्वरूप एवं लक्ष्यकारण 2. निमित्त कारण (Efficient Cause) आकार में समाहित हैं, अतः आकार पहले भी है। कुंभकार 3. स्वरूप कारण—(Formal Cause) मिट्टी तब इकट्ठा करता है जब उसके मस्तिष्क में घड़ा 4. अंतिम कारण (Final Cause) बनाने का विचार आ जाता है, अतः स्वरूपकारण की दृष्टि स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 अनेकांत विशेष.89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy