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________________ शारीरिक संरचना में झलकता अनेकांत डॉ. जे. पी. एन. मिश्रा सर्वथा सर्वथा भिन्न प्रकार की रचना एवं क्रिया वाले जीवों का एक साथ सामंजस्य बिठाते हुए सहजीवन बिताना अनेकांत का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है। यूं तो विरोधीगुण, विरोधी प्रकृति तथा विरोधी विचारधारा के बावजूद मिलजुल कर परस्पर प्रेम से रहना, संघर्ष से बचते हुए सह-अस्तित्व की रक्षा करना ही अनेकांत है, पर यह केवल व्यवहार के लिए ही नहीं प्रकृति के अनेक अन्य क्षेत्रों में भी लागू होता है। मानव समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। इस श्रेष्ठता का पैमाना उसका चिंतन और व्यवहार है । व्यवहार वह प्रक्रिया है जो मनुष्य स्वयं के साथ करता है, अन्य मनुष्यों के साथ करता है, पर्यावरण और पारिस्थितिकी के साथ करता है और अन्य प्राणियों के साथ संपादित करता है। व्यवहार की प्रक्रिया में मनुष्य के साथ-साथ कोई एक अन्य पक्ष अवश्य होता है, यानी व्यवहार द्विपक्षीय प्रक्रिया है। द्विपक्षीय व्यवहार में अनेकांत की भूमिका अपेक्षाकृत स्पष्ट दृष्टिगोचर हो सकती है। यदि हम सूक्ष्मता से विचार करें तो मानव शरीर की रचना एवं क्रिया अनेकांत की सार्वभौमिकता एवं शाश्वतता को सिद्ध कर रही दिखाई देती है। परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, शरीर के अंदर प्रतिक्रियाएं सदा संतुलित रूप से ही संपादित होती हैं। यदि कहीं असंतुलन होता है तो वह आनुवंशिकता या अन्य रचनात्मक दोषों के कारण ही होता है। इन सभी अनुक्रियाओं के बीच विरोध के साथ सह-अस्तित्व अनेकांत का ज्वलंत उदाहरण है। शारीरिक संरचना के स्तरों में अनैकांतिक व्यवस्था मानव शरीर की संरचना के मुख्य पांच स्तर होते हैं— 1. रासायनिक स्तर, 2. कोशिकीय स्तर, 3. ऊतकीय स्तर, 4. अंगीय स्तर 5. तंत्रीय स्तर । मार्च - मई, 2002 रासायनिक स्तर का संबंध प्रकृति में पाए जाने वाले रासायनिक तत्त्वों से है। हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, Jain Education International कार्बन, फास्फोरस, लोहा, तांबा आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। ये सारे तत्त्व, जिनकी कुल संख्या वर्तमान में 109 है— स्वतंत्र रूप से भी और संयुक्त रूप से भी प्रकृति में पाए जाते हैं। हममें से हर कोई पानी से परिचित है। पानी का निर्माण हाइड्रोजन और आक्सीजन के क्रमशः दो और एक अणुओं के मिलने से होता है। ये दोनों प्रकार के अणु जब एक विशेष प्रकार के 'बंध' के द्वारा एक-दूसरे से बंध जाते हैं, तो पानी बन जाता है। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के दो या दो से अधिक अणु जब निश्चित अनुपात में 'बंध' बनाते हैं तो उसे यौगिक कहते हैं। कहना न होगा कि समस्त सृष्टि की रचना इन्हीं तत्त्वों / यौगिकों के द्वारा ही हुई है— चाहे वे जीवित प्राणी हों या मृत पदार्थ। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन तत्त्वों की रचना विरोधी गुणधर्म वाले इलेक्ट्रॉनों / प्रोटॉनों के संयोग से होती है। इन तत्त्वों के अणु विपरीत गुण वाले होते हुए भी आपस में संयोग करते हैं। संयोग ही नहीं, कुछ इस प्रकार की रचना के लिए आपस में 'बंध' बनाते हैं जो सर्वथा स्थाई और दृढ़ होते हैं। मानव शरीर की संरचना में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण आदि यौगिक प्रमुख हैं । सर्वथा विपरीत गुण रखते हुए भी ये सारे रासायनिक पदार्थ एक साथ मिलते हैं, रहते हैं, कार्य करते हैं और जीवन को आयाम देते हैं। कोशिकीय स्तर का प्रादुर्भाव विशिष्ट इकाई रचनाओं से होता है जिसे कोशिका कहते हैं। कोशिका जीव की ऐसी इकाई है जो जीवन के समस्त लक्षणों से ओतप्रोत तथा समग्र गुणों वाली होती है। सबसे पहली भिन्नता कोशिका के आकार-प्रकार में होती है। कुछ कोशिकाएं गोल या स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती For Private & Personal Use Only अनेकांत विशेष • 81 www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
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