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________________ (1) Quanta तरंग है या कण? (2) क्या ऐसा त्रिभुज (स) जैन मत की दृष्टि से किसी दार्शनिक विवाद में संभव है जिसके तीनों कोणों का योग दो समकोणों जितना क्या दृष्टि समीचीन होगी? जबकि वह यह मानता है कि न हो? (3) क्या ईथर है? (4) क्या 1-1 है? इन कोई भी दृष्टि सर्वथा मिथ्या नहीं है। प्रश्नों के उत्तर या तो सापेक्ष होंगे या गलत होंगे। जब हम इसका उत्तर जो मैं देना चाह रहा हं उसके लिए मझे ऐसे प्रश्नों पर विचार करें कि At/2 में इलेक्ट्रोन कहां है थोड़ा-सा तर्कशास्त्र का सहारा लेना पड़ेगा। जो-कुछ जैन (जबकि At वह समय है जो इलेक्ट्रोन को अपने परिमंडल कहते हैं, उसके आधार पर मैं पहले औपचारिक रूप से से छलांग लगाने में लगता है)? तब तृतीय विकल्पाभाव के संशय और विरोध को परिभाषित करूंगा। नियम और अविरोध के नियम की आवश्यकता हमारी संशय (अनिश्चय की स्थिति) तब उत्पन्न होता है भाषागत रूढ़ियों के कारण है न कि वस्तु के वस्तुनिष्ठ जब 'S' (ज्ञाता) इस संबंध में निश्चित न हो कि 'A' 'Xप्रकृति के कारण, यह मतवाद विचित्र नजर नहीं आता है। धर्मी है या 'Y-धर्मी' अर्थात् 'Xa' ठीक है या 'Ya' ठीक अथवा जब हम आज के परा-संगत (Para-Consistent) नैयायिकों द्वारा जो प्रश्न गंभीरता से उठाए जा रहे हैं (जैसा है। इस प्रबंध में परस्पर असहिष्णु अर्थात् व्यावर्तक विकल्प (mutually exclusive disjunction) सूचित करने के कि जो कप पृथ्वी पर गिरता है और टूट जाता है, क्या वह जिस क्षण टूटना प्रारंभ होता है उस क्षण खंडित होता है या लिए मैंने 'V' चिह्न का व्यवहार किया। यह चिह्न व्यावर्तक है। 'S' इस संबंध में निश्चित नहीं है कि 'a' 'X-धर्मी है या नहीं?) उन पर विचार करें तब तृतीय विकल्पाभाव तथा 'Y-धर्मी' यह सूचित करने के लिए हम इस प्रकार अविरोध का नियम संबंधी उपर्युक्त मतवाद विचित्र नजर नहीं आता। स्वयं महावीर ने और उनके अनुगामियों ने इस लिखेंगे-Us(?Xa V?Ya) अब हम संशय को इस प्रकार परिभाषित करेंगे: प्रकार के तर्क गंभीरता से उठाए हैं कि कुछ क्षण पहले जलाई गई मोमबत्ती. किसी भी अर्थ में जल चुकी या नहीं? Us(?Xa V?Ya)=df{(s a को जागरूकतापूर्वक इसका उत्तर विभज्यवाद द्वारा दिया गया है। जानता है तथा ap-धर्मी है) तथा (यह संभव है कि axकहा जा सकता है कि हमारी व्याख्या समीचीन होने धर्मी भी हो तथा Q-धर्मी भी हो) तथा (यह संभव है कि a Y-धर्मी भी हो तथा Q-धर्मी भी हो) तथा (s का विश्वास है पर भी बहुत दूरगामी नहीं है। हमने प्रारंभ में अवश्य यह कहा है कि जैन मत सभी विधेयों को सापेक्ष मानते हैं। किंतु क्या कि a का X-धर्मी एवं Y-धर्मी दोनों होना संभव नहीं है) सुदृढ़ वस्तुवादी व्याख्या के आधार पर वे निरपेक्षतावादी तथा (s के पास कोई ऐसा प्रमाण नहीं है कि वह निर्णय ले जैसे दिखाई नहीं देते? मेरा उत्तर यह है कि प्रथमतः सत् भी र । सके कि a x-धर्मी है अथवा y-धर्मी)} एक योजना के अंतर्गत सापेक्ष हो सकता है और इस प्रकार प्रतीकों की भाषा में हम इस प्रकार कहेंगे : मेरी व्याख्या निरपेक्षवादी नहीं है, यद्यपि यह सुदृढ़ वस्तुवादी Us(?Xa VYa)={(Csa & Qa) & M (Xa & है। आज के विज्ञान के दर्शन में एक आंतरिक वस्तुवाद Ya) & M (Ya & Qa) & Bs (-M(Xa &Ya)) & (internal realism) की प्रवृत्ति चल रही है, जिसमें (-EsXa & -EsYa)} सापेक्षता और वस्तुवाद के बीच समन्वय किया गया है। यह Csa=s जागरूकतापूर्वक 'a' को जानता है; Bsp-s बड़ा व्यापक विषय है। मैं इसकी चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि के विश्वास करता है कि 'p' (जबकि p कोई भी तर्क वाक्य है) मैंने इसकी चर्चा अन्यत्र की है। यहां यह उल्लेख करना EsXa=s के पास प्रमाण है कि ax-धर्मी है, तथा 'M' उचित होगा कि जैनों का वस्तुवादी अनेकांतवाद आंतरिक संभावनासूचक घटक चिह्न (Modal operator sign for वस्तुवादी व्याख्या से सहज ही मेल खाता है। 'possiblity') है। अब हम तीन प्रश्नों पर विचार करेंगे । स्याद्वाद की व्याख्या करते समय जैन (i) इस प्रश्न (अ) क्या अनेकांतवाद से संशयवाद फलित पर विचार नहीं करते कि क्या घट एकांततः है या नहीं? होता है ? (ii) परंतु अनेकांतवाद के अनुसार वे यह मानते हैं कि Xa (ब) जैनों के अनुसार वदतो-व्याघात अथवा (घटः अस्ति) तथा Ya (घटः नास्ति) दोनों के पक्ष में स्वविरोध की क्या कसौटी है? प्रमाण हैं (तुलनीय यदनंतधर्मात्मकं न भवति तत्प्रमेयमपि mmmmm 201 1 111111111 स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती 36. अनेकांत विशेष मार्च-मई, 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
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