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________________ हुआ मैं ताड़ गया कि कांटा ठीक फंसा है। यह प्रलोभन भी कल दोपहर के बाद की बात है। मैं येमेशिना के रास्ते कोई कम न था। चुपड़ी-चुपड़ी बातों से मैंने पहले ही उनको पर जा रहा था। वहीं पर वह आदमी भी पत्नी के साथ जा अपने विश्वास में ले रखा था। झाड़ी के नजदीक पहुंचने पर रहा था। यानी हम सब एक ही राह पर थे। ठीक उसी वक्त मैं दुबारा बोला, 'खजाना झाड़ी के अन्दर उधर गड़ा पड़ा हवा का एक झोंका आया, जिससे औरत के सिर से कपड़ा है। मेरे साथ चलिए।' हट गया। मैं उसकी सिर्फ एक झलक पा सका। उसका आदमी मेरे साथ हो लिया। चेहरा दुबारा नहीं दिखा। उस नजर में ही वह मुझे बोधिसत्व 'आप जाइए। मैं यहीं रुकती हूं।' कहकर औरत वहीं जैसी पवित्र और पारदर्शी लगी। उसी वक्त मैंने उसका रुक गई। उसका कहना वाजिब था। झाड़ियां देखकर वह अपहरण कर लिया। अपने विचार को कार्य रूप देने के लिए रुकी थी। मैं अपने सोचे हुए ढंग से कामयाब हो रहा था। मुझे उसके आदमी को मारने की जरूरत पड़ गई। मुझे इस हम दोनों आगे चले। बांस की झाड़ी से पचास गज आगे बात का खेद नहीं है, क्योंकि मैं मौत को जिंदगी के ऐसे एक कुंज आया। यह देवदार का कुंज है। यही मेरे मतलब खतरनाक नतीजों में नहीं गिनता हूं, जैसे आप सब। मेरे की जगह थी। मैं उसको कुंज की तरफ बहकाकर लाया। हिसाब से जिस वक्त औरत का अपहरण होता है, उसी तलवारें देखने की उत्सुकता में उसको भी जल्दी मची थी। वक्त उसके पति की भी मौत होती है। उस आदमी को मैंने झाडी खत्म होने के साथ-साथ बांस भी कम होते गए। तभी इस तलवार से मारा, जो मेरे गले में लटक रही है, लेकिन, मैंने उसको पीछे से पकड़ लिया। वह हट्टा-कट्टा आदमी लेकिन...सिर्फ क्या मैं ही लोगों को मारता फिरता हूं। तुम तलवार-युद्ध का खासा अनुभवी लग रहा था, लेकिन नहीं ? तुम तलवार नहीं चलाते हो? तुम भी चलाते हो। अचानक पकड़ने से अवाक् रह गया। वह बेबस हुआ। मैंने फर्क इतना है कि तुम लोगों के हितैषी बनकर अपनी सत्ता के बड़ी आसानी से उसको देवदार के साथ बांध दिया। बल पर उनको चूसते हो। यह बात और है कि गला काटकर 'रस्सी ?' उनका खून नहीं बहाते हो। उनकी अंतरात्मा को भेदते हो। पेशे से चोर हूं। रस्सी हरदम साथ रहती है। कई बार तुलना करने पर बताना मुश्किल होगा कि महापातकी तुम हो । दीवार फांदनी पड़ती है। ऐसे में मैं रस्सी से काम लेता हूं। कि मैं ? (व्यंग्यपूर्वक मुस्कराता है।) अस्तु, उसको बांधने के बाद मैं ढेर सारे बांस के पत्ते लाया पहले मैंने सोचा था कि इस आदमी को मारे बिना और उसके मंह में ठंस दिए, ताकि उसकी बोलचाल खत्म औरत को उड़ा ले जाऊं। इसकी मैंने हो जाए। मेरा काम पूरा हो गया। अब कोशिश भी की थी। आप खुद समझ मैं उसकी औरत को बुलाने चला। सकते हैं कि येमेशिना के तंग रास्ते पर हां, तुम्हारी जोर-जबरदस्ती अपनी कामयाबी की चर्चा करना मुझे यह काम करना कितना कठिन है। से मैं झूठे इलजाम मान गैरजरूरी लग रहा है। इसलिए मुझे एक तरकीब सोचनी लूंगा-यह तुम्हारी मैंने उसकी औरत को बुलाया। पड़ी। मैंने इन लोगों को पहाड़ी की गलतफहमी होगी। इस तरफ खींचने की कोशिश की। यह हादसे के बाद कोई ऐसी टोपी हाथ में पकड़े वह झाड़ियों की स्थिति बाकी नहीं रही है, तरफ आई। कुंज से पास पहुंचते ही चाल काम की रही। इनके कदम से जिसके लालच में मैं बचने उसने अपने आदमी को बंधा हुआ कदम मिलाकर मैं सहयात्री बन गया। की आशा से झूठ बोलूं। पाया, तो एकदम तैश में आ गई। उसने बात-चीत करता रहा। ये दोनों मस्ती इसलिए मैं साफ-साफ बयां तलवार निकाली और खूख्वार होकर में जा रहे थे। बात-बात में मैं बोला, करता हूं कैसे क्या-क्या मेरी तरफ दौड़ी। ऐसी आक्रामक औरत 'एक बार मैंने पहाड़ का ऊपरी टीला हुआ से जिंदगी में पहली बार मेरा साबका खोदा था। मुझे बहुत सारी शीशे की पड़ा था। मैंने खुद को बचाया। अगर मैं तलवारें मिलीं। मैंने ये झाड़ियों में जोर नहीं लगाता, तो वह बहुत जल्दी छिपाकर रख दीं। कोई लेने वाला मिलता, तो मैं एकदम मुझे जमीन पर गिरा देती, या बुरी तरह घायल कर छोड़ती। सस्ते दाम में बेच देता।' वह मुझे चीरने के लिए बार-बार लपक रही थी। देर तक स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 अनेकांत विशेष. 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014015
Book TitleJain Bharti 3 4 5 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhu Patwa, Bacchraj Duggad
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year2002
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size33 MB
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