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महात्मागांधी का प्रयोगदर्शन
कल समाज और धर्म को अध्यात्म के अनुकूल बनाने का तो कोई प्रयास नहीं करता, उलटे समाज व्यवस्था से धर्म को ही बाहर करना श्रेयस्कर समझता है। पहले आध्यात्मिक साधना की प्रयोग भूमि व्यक्ति था किन्तु आज धर्म को भी व्यक्तिगत माना जाने लगा है। धर्म की यह स्थिति अध्यात्म से पराङ्मुख होने के कारण ही हुई है।
जब धर्म अध्यात्म से च्युत होकर देश, सम्प्रदाय, वर्ग, जाति व्यक्ति आदि की संकुचित सीमाओं में आबद्ध हो जाता है तथा सभी में व्यापक अखण्ड तत्त्व को खण्ड-खण्ड करके दम्भ और पाखण्ड के पोषण में संलग्न हो जाता है, तब नीतिशास्त्र किसका आलम्बन करके खड़ा रहे ? कैसे मनुष्य अपने जीवन का पवित्र लक्ष्य निर्धारित करें? लोकहित का निर्धारण कैसे करें ? तथा उसके लिए अपने स्वार्थ का त्याग कैसे करें ? इत्यादि प्रश्न समस्या बन कर उपस्थित हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में करुणाशील महात्माओं एवं सत्पुरुषों द्वारा अपनी अमृतवाणी और सदाचरणों द्वारा यद्यपि समाज बार बार उद्बोधित किया जाता है, किन्तु समाज उनसे थोड़ा सा सचेतन होकर पुनः जड़ता की स्थिति में पहुँच जाता है । आज तक ऐसी समाजव्यवस्था नहीं बन सकी है, जिसमें सत्य, अहिंसा, दया, आर्जव आदि गुणों के द्वारा ही मानव सुखी हों-ऐसा मान कर समाज में न्याय, सविधा आदि की प्राप्ति के लिए हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या आदि का संग्रह और प्रयोग नीतिशास्त्रकारों ने विधि सम्मत न माना हो । मानवता के ह्रास का वस्तुतः यही निदान है। लगातार ह्रास को प्राप्त हो रही समाजव्यवस्था के इस रहस्य को जानकर महात्मागांधी ने सत्य, अहिंसा आदि शाश्वत साधनों के द्वारा ही हीन मानव समाज के उद्धार के लिए एक नूतन प्रयोग-पद्धति का आविष्कार किया, जो ( पद्धति ) अध्यात्म और अधिभूत तथा स्वार्थ एवं परार्थ के बीच भेद पैदा करने वाले विरोधी तत्त्व को नाश करने में तथा साथ ही अध्यात्म के साथ योग करके विशुद्ध नैतिक आधार पर समाज का नव निर्माण करने में समर्थ है। प्राचीन युग में ईशामसीह, महात्मा बुद्ध और महावीर आदि ने जीवनसंघर्ष की उपेक्षा करके मानव के लिए उत्कृष्ट आदर्श की स्थापना की। कृष्ण, मोहम्मद आदि ने घनघोर जीवनसंघर्ष करते हुए भी चित्त में समता एवं हिंसा, क्रूरता आदि से मन को निर्लिप्त रखने की कुशलता प्रदर्शित की। महात्मा गांधी ने संसार से हिंसा आदि दोषों को हटाने के लिए न केवल कौशल अर्जित विया, अपितु उसका उपदेश भी किया। इतना ही नहीं, उन्होंने हिंसा का समाज से समूल उन्मूलन के लिए मन और क्रिया में तादात्म्य करके सत्याग्रह नामक अभूतपूर्व आध्यात्मिक चमत्कार को प्रस्तुत किया।
परिसंवाद-३
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