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________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं न होने पर ही गांधीजी द्वारा निर्दिष्ट विधि से सत्याग्रह के रूप में अहिंसात्मक संघर्ष किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में जनता का सही नेतृत्व ही सत्याग्रह पर निष्ठावान् कार्यकर्ताओं और नेताओं का कर्तव्य हो जाता है। गांधीजी की अपनी राय में लोकतन्त्र में 'सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा का सीमित प्रयोग ही वांछनीय है, धरना दुराग्रह जंगलीपन है, प्रतिरोध को अपराधित अवज्ञा और अराजकता का रूप देना हानिकर है, शान्तिपूर्ण प्रतिरोध ही लाभदायक हो सकता है। उनका कहना था कि लोकतन्त्रवादी को अपनी या अपने दल की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक मात्र लोकतन्त्र को दृष्टि से सब कुछ सोचना चाहिए। तभी वह सविनय अवज्ञा का अधिकारी हो सकता है। गांधीजी के विचार में स्वस्थ असन्तोष उन्नति का मंगलाचरण है। सार्वजनिक कार्यकर्ताओं की समीक्षा जनता की सतर्कता का सुविद चिह्न है। दुराचार और अन्याय के विरुद्ध नियन्त्रित आन्दोलन राष्ट्र विकास की शर्त है। पर अनियन्त्रित आन्दोलन राष्ट्रहित के लिए हानिकर है। जनता की दुर्भावनाओं को उभार कर लोकतन्त्र को भीड़तन्त्र में बदलने का प्रयास जनता और कार्यकर्ता दोनों को भ्रष्ट करना है, भीड़तन्त्र और हुल्लडबाजी में से लोकतन्त्र विकसित करना प्रजातन्त्र नहीं है । भीड़ तो मनमानी राष्ट्रीय बीमारी का लक्षण है, उन्हें सत्याग्रह बताना सर्वथा अनुचित है। गांधीजी सैन्यवाद, साम्राज्यवाद तथा हर प्रकार के अधिनायकतन्त्र को अभिशाप तथा सब राज्यव्यवस्थाओं में लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सर्वोत्तम समझते थे। वे चाहते थे कि देश में स्वस्थ लोकतान्त्रिक व्यवस्था प्रतिष्ठित की जाय । उनका कहना था कि सब के सामान्य हित की सेवा में जनता के सब वर्गों के सम्पूर्ण भौतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक साधनों का संग्रहण ही सार में लोकतन्त्र की कला और उसका विज्ञान है. । जिस काम को लाखों करोड़ों लोग मिलकर कर सकते हैं, उस काम में अद्भुत शक्ति आ जाती है। एक शक्तिशाली व्यक्ति के प्रयास द्वारा भी लक्ष्य की पूर्ति सम्भव हो सकती है, पर एक व्यक्ति की सफलता एक करोड़ वाले द्वारा लाखों, करोड़ों को मुफ्त खाना बांटना जैसी होगी। इसलिए लोकतान्त्रिक युग में लक्ष्यों की पूर्ति जनता के सामूहिक प्रयास द्वारा ही होना चाहिए। गांधीजी कहते थे कि लोकतन्त्र सब लोगों का राज्य, न्याय का राज्य है, 'ऐसा राज्य है जिसमें गरीब से गरीब लोग भी यह महसूस करें कि भारत उनका देश है और उसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्त्व है। वे चाहते थे कि लोकतन्त्र परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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