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________________ गोष्ठी का संक्षिप्त विवरण इसमें कोई सन्देह नहीं। अब इसके क्या कारण थे? कारण अनेकों हो सकते हैं, लेकिन एक स्पष्ट कारण तो यह प्रतीत होता है कि क्योंकि भारतीय दर्शन मोक्षाभिमुख रहा है । इसीलिए संसार की समस्याओं की तरफ उसका ध्यान नहीं गया। जब हम पाचात्यदर्शन से उसकी तुलना करते हैं, तो हम देखते हैं। एक बात बड़ी विशेष रूप में प्राचीनकाल से अब तक जो पाश्चात्य जगत् के बड़े बड़े दार्शनिक हुए हैं। उन्होंने तत्त्वज्ञान और ज्ञान-मीमांसा के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी पर्याप्त रूप से विचार किया है जिसका उल्लेख भी यहाँ आया है, जैसे राजनीति-दर्शन, समाजदर्शन, शिक्षा-दर्शन आदि पर बड़े व्यापक रूप से दार्शनिकों ने विचार किया। कभी कभी हमारे मन में यह जरूर आता है कि भारत के इतने उच्च-कोटि के दार्शनिक इन विषयों पर विचार करते, तो हम लोगों की संस्कृति कितनी समृद्ध हो जाती। एक मुख्य कारण जो हमको लगता है कि भारतीय दार्शनिक इतने बड़े-बडे दार्शनिक जैसे नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि वे रसायन के बहुत बड़े ज्ञाता थे, उन्होंने बड़े अन्वेषण किये। यहाँ तक कि गणित में जो शून्य का आविष्कार हुआ वह भारतीय मणितज्ञ ने किया। अब इस तरह की प्रतिभा होते हुए भी एक जरूर यह बात भाती है कि क्यों सांसारिक समस्याओं की तरफ भारतीय दार्शनिकों का ध्यान नही गया। उसका दर्शन के अन्दर जो मोक्ष का कारण मिलता है, वह तो है ही। दूसरा भी स्पष्ट कारण है, वह यह मालूम पड़ता है कि भारतीय लोक-जावन और लोकज्यपहार धर्मशास्त्रों से हमेशा नियंत्रित रहा और इसीलिए शायद दार्शनिकों को स्वतन्त्रता नहीं थी कि धर्मशास्त्रों के विषय में वे हस्तक्षेप करते। इसीलिए भारतीय दर्शन कुछ लौकिक समस्याओं के प्रति उदासीन रहे। लेकिन एक बात है, वह यह है कि इसका सारा दोष दार्शनिकों पर नहीं देना चाहिए कि उन्होंने लोकजीवन की उपेक्षा की है। हमको ऐसा लगता है कि अपने देश की हवा कुछ ऐसी है कि यहाँ कुछ इस प्रकार की उदासीनता तभी से रही है। एक उदाहरण हम आपको देते हैं। जैसे राजपूत लोग थे, कतयी वे दार्शनिक लोग नहीं थे। साथ ही संसार में लिप्त लोग थे। इन बड़े-बड़े राजाओं को कभी यह जिज्ञासा नहीं हुई कि दूसरे देशों में सैन्य-विज्ञान कितनी उन्नति कर गया है हम भी उसका विकास करें। अब इसका एक जरा तमाशा देखिये। अलेक्जेण्डर का आक्रमण होता है। हाथी सेनॉ बिल्कुल व्यर्थ होती है किसी भी युद्ध के लिए यह सभी समय सिद्ध हो जाना चाहिए था, पर्याप्तरूप से। भारतीयों ने कभी नहीं सीखा। उसका फल यह हुआ कि जब राना सांगा और बाबर का युद्ध परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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