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________________ मौलिक दर्शन की सम्भाव्य दिशाएं दर्शन का मुमुक्षा से घना सम्बन्ध होने के कारण परम्परा प्राप्त भारतीय दर्शन व्यक्तित्व की अभिबृद्धि (enrichment of Personality) के प्रति उदासीन अथवा सहानुभूति शून्य ही रहा है। हमारे सुख्यात दार्शनिकों में शायद ही कोई मिले जो प्रेम और शृङ्गार को बढ़ावा देने में रुचि रखता हो, काव्य और सङ्गीत, कालिदास और गालिब, को दार्शनिक के लिए अनिवार्य समझता हो। कहने को तो परम्परा प्राप्त पुरुषार्थ चतुष्टय की सूची में तृतीय पुरुषार्थ काम ही है, किन्तु काम की महत्ता और आवश्यकता पर हमारे दार्शनिक मौन ही दिखायी देते हैं। कामाध्यात्म-सिद्धान्त एक आधुनिक भारतीय दार्शनिक की सूझ है। वैदिक दार्शनिकों, ऋषियों में इस पवित्रतावादी प्रवृत्ति का अवश्य ही अभाव था । __ हमारा मध्यकालीन दर्शन जीवनोन्मुख नही था, अतः उसमें समाज, संस्कृति, राजनीति, शिक्षा आदि जीवन-निर्मायक विधानों की ओर से उदासीनता ही परिलक्षित होती है दर्शन का सफल सामाजिक-सांस्कृतिक विनियोग ही उसके प्रामाण्य का प्रमाण है । आज होता यह है कि दार्शनिक कभी-कभी उन विषयों पर भी चिंतन कर लेता है, यद्यपि उसका उसके दर्शन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हम ऐसे चिंतन की बात नहीं कर रहे हैं। हमारा सामाजिक-सांस्कृतिक चिन्तन हमारे दर्शन से निःसृत होना चाहिए। ऐसा दर्शन संस्थान-निर्माण की शक्ति की अपेक्षा करता है, जिसका तेजी से लोप होता जा रहा है। इतना ही नहीं आज संस्थान-निर्माण पागलपन की वस्तु माना जाने लगा है। किन्तु हमारी अन्तरात्मा, हमारी सहजबुद्धि, जन-मानस तत्त्वज्ञान और जीवन में समन्वय के पक्ष में प्रतीत होता है। आज स्फुट विचार प्रस्तुत करने वाले दार्शनिकों की नहीं, बल्कि संस्थान-निर्माता मार्क्स की पूछ अधिक होने का यही कारण है। वस्तुतः संस्थान ही दर्शन की सुघटित, सुव्यवस्थित और अर्थक्रियाकारी रूप दे सकता है, संस्थान ही दर्शन का निकष है। विषयानुपूर्वी-भेद, श्रेणी-भेद, से दर्शन के प्रायः आधे दर्शन भेद हो जाते हैं। इस सन्दर्भ में प्रथमश्रेणी का दर्शन वह दर्शन है जो अस्तित्व के सारासार, सार्थक्यानर्थक्य, का विचार करता है; द्वितीय श्रेणी का दर्शन अनुभव और अनुभूत की सत्यता-असत्यता का विचार करता है; तृतीयश्रेणी का दर्शन सत्यासत्य के निकष को निर्धारित करता है; चतुर्थश्रेणी का दर्शन सत् और सत्य की अभिव्यक्ति के प्रश्न पर विचार करता है; पञ्चमश्रेणी का दर्शन दर्शन-विज्ञान (सायन्स आफ फिलॉसोफ़ी) कहा जा सकता है, जिसके अन्तर्गत दर्शनेतिहास, दर्शन का समाजशास्त्र, दर्शन का मनोविज्ञान, दर्शन-समीक्षा, आदि आते हैं; षष्ठश्रेणी का दर्शन दर्शनदर्शन (Philosophy of Philosophy) कहा जा सकता है। हमारे यहाँ प्रथम और परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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