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________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं स्वरूप का प्रतिपादन, अन्धकार की स्वतन्त्र द्रव्यसत्ता आदि पर विवेचन करता है । " इनका आज के वैज्ञानिक चिन्तन में कोई स्थान नहीं है । आज के दार्शनिक के सामने वेदान्त का अभ्यास, बौद्धों का सांवृत्तिक सत्य तथा सांख्य की बुद्धि, अहंकार तत्त्वों का स्वरूप अपने खोखलेपन को प्रगट कर चुका है । लेकिन हमारा परम्परावादी दार्शनिक इससे बिल्कुल असावधान हैं । मौलिक दार्शनिकता के लिये विचारों की मौलिकता आवश्यक होती है और वह मौलिकता तभी आ सकती है जब वैचारिक भाषा जिसका आप उपयोग कर रहे हैं वह आपकी हो । हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ के परम्परावादी तथा नये दार्शनिक दोनों ही ऐसी भाषाओं में चिन्तन करते हैं जिसमें उनका केवल अभिनिवेश मात्र है मौलिकता नहीं । विचारों की मौलिकता तो दिन प्रतिदिन की समस्याओं से तथा वातचीत से ही आ सकती है और वह हम आने देना ही नहीं चाहते, क्योंकि यदि वह आयेगी तो परम्परावादी पण्डिताई तथा अल्ट्रामाडर्न की चिन्तनशीलता पर पानी फिर जायेगा । : ७४ दर्शनशास्त्र के अध्ययन की परम्परा को सामान्य बुद्धि वाले मानव के हितों से जोड़कर उसका अध्ययन मानव कल्याण के सम्पादन में होना चाहिए। वह कल्याण सम्पादन चाहे मानव मूल्यों की तार्किक स्थापना से हो, चाहे धर्म की आस्था से | बेकन ने कहा है- "दर्शनशास्त्र का अल्प अध्ययन मनुष्य के मस्तिष्क को नास्तिकता की ओर झुकाता है किन्तु गहन अध्ययन उसे धर्म की ओर ले जाता है । आज हम दर्शन की मदद के लिए या तो विज्ञान की तरफ आशाभरी निगाह से देख रहे हैं या नहीं तो धर्म की तरफ आस्थाभरी निगाह से देख रहे हैं । पीछे देख चुके हैं कि धर्म ने किस प्रकार मध्ययुग में दर्शन के पंख काट लिये थे तथा दर्शन परकटे कबूतर की तरह मन्दिर-मस्जिद तथा गिरिजाघरों में ही तड़फड़ा रहा था । विज्ञान ने भी आस्थाओं का निरास कर ऐसा वातावरण पैदा कर दिया कि हम मनुष्य से आगे बढ़कर या तो दानवी रूप धारण करेंगे या देवीरूप । पश्चिम के समकालीन दार्शनिकों ने तत्त्वमीमांसा की आलोचना करते हुए कहा है कि - यदि कोई नया ज्ञान हमें प्राप्त होता है जो हम अनुभव से प्रमाणित नही कर सकते हैं तो वह ज्ञान शब्द झंकार मात्र है, इसका कोई अर्थ नहीं है । कोई देव या दैत्य हमें तत्त्वमीमांसा का ज्ञान नही करा सकता है ।" इस प्रकार आस्था विहीन हम समाज की क्या, अपना ही जीवन संकटों में डालकर भटका रहे हैं । १. पूर्वी एवं पश्चिमी दर्शन डा० देवराज २. दर्शनशास्त्र का परिचय पृ० ३८ हिन्दी अनुवाद टी० डब्ल्यू पैट्रिक | ३. देयरफोर नो गाड एण्ड नो डेविल कैन गिभ अस मैटाफिजिकल नालेज. 'द एलिमीनेशन आफ मेटा फिजिक्स' पृ० ७३ परिसंवाद - ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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