SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं आदि तन्त्र में शैव, शाक्त, वैष्णव, जैन और बौद्धतन्त्र एवं अन्य वैदिक और वैविकेतर सम्प्रदाय । (२) सन्तों तथा महात्माओं का दर्शन-यदि भारत के जीवनशैली को यह स्पष्ट हो जाता है कि वह विद्वानों और चिन्तकों के विचारों से उतना प्रभावित नहीं है जितना सन्तों तथा महात्माओं के विचार से । भारत इन महात्माओं का विचार सम्पदा से सदा ही समृद्ध रहा है और यह अक्षुण्ण वैभव आज भी देश के विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है उदाहरण के लिए कुछ का संकेत किया जा रहा हैं -- हिन्दी में कबीर, तुलसी, सूर, रैदास, मीराबाई, दरियासाहेब आदि। मराठी में-ज्ञानेश्वर, तुकाराम, रामदास, एकनाथ, महीपति,आदि भाऊसाहेब। कर्णाटक में-वासवेश्वर, चन्नावासव, सर्वज्ञ, प्रभुदेव-आदि । इसी प्रकार बंगाली, उड़िया, तमिल, तेलगू आदि सभी भाषाओं में सन्तों ने अपूर्व ज्ञान सम्पदा एकत्र की है। यद्यपि यह ज्ञान सम्पदा तर्क युक्तियों से उतना सुसंगठित नहीं है जितना साक्षात् अनुभूति, निष्ठात्मक प्रयास एवं आदर्श आचरण से। (३) नव जागरणकालीन चिन्तकों का दर्शन- पराधीनता को बेड़ी को काटने के लिये राज्यक्रान्ति के साथ ही विचारक्रान्ति का भी सूत्रपात हुआ । यह अनुभव किया जाने लगा कि विचार तथा व्यवहार में, कथनी एवं करनी में सामञ्जस्य स्थापित किए बिना नव समाज का निर्माण नहीं हो सकता । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक चिन्तकों ने अधिक प्रयास किया और भारतीय दर्शन को नया मोड़ दिया। इन चिन्तको में राजाराममोहनराय, रामकृष्ण, विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, रामतीर्थ, तिलक, गान्धि, टैगोर, डा० भगवानदास, अरविंद, इकवाल आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। (४) आधुनिक भारत में अनेक सम्प्रदाय अपने सिद्धान्त के प्रचार एवं प्रसार करते हुये अपने सिद्धान्त के पूर्ण निष्ठा के दावा के साथ रह रहे हैं, इनके सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनों पक्षों पर वर्तमान समाज कि स्थिति तथा आगे आने वाले समाज का आधार टिका हुआ है। इनमें शैव, शाक्त, वैष्णव, जैन, बौद्ध सिख, पारसी, मुसलमान, इसाई आदि प्रमुख हैं। परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy