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________________ गान्धीदर्शन परिचर्चा की पष्ठाम श्री राधेश्यामधरद्विवेदी अखिलभारतीय खादी ग्रामोद्योग आयोग, लखनऊ, के द्वारा विश्वविद्यालयीय स्तर पर समूह परिचर्चा के लिए समारम्भ की बात उठने पर तुलनात्मकदर्शन के विषयानुरूप मानकर इस गोष्ठी को सम्पन्न करने का भार मुझ को सौंप दिया गया। मैं इसे सहर्ष स्वीकार करते हुए अपने विश्वविद्यालय की परम्परा के अनुकूल गांधी विचारों से सम्बन्धित इस परिचर्चा-गोष्ठी को आयोजित करने की दिशा में प्रयत्नशील हो गया। जिसके परिणाम स्वरूप हम इस भीषण गर्मी में उपस्थित हुए हैं। आज के युग में शिक्षा, समाजसेवा, धर्म, राजनीति तथा अर्थनीति आदि सभी दृष्टियों में गांधी को ध्यान में रखे बिना कोई अगला कदम उठाना भारतवर्ष के विद्वानों के लिए कठिन काम लगता है। क्योंकि गांधी की इन सब विधाओं पर अनुपम छाप है। संस्कृतविश्वविद्यालय उस परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें गांधी स्वयं आविर्भूत हुए थे, फलतः गांधी जी के विचार किस प्रकार प्राचीन भारतीय विचारों से प्रभावित हुए तथा वह परम्परागत विचारों से नये सन्दर्भ में समस्त जगत को किस हद तक प्रभावित कर सके इसका आकलन इस परिचर्चा गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य है। मैं कतिपय मुद्दों को आप विद्वज्जन के सम्मुख प्रस्तुत कर अपनी परम्परा के विकासक्रम में अवस्थित महात्मागांधी के विचारों से आज की समस्याओं के समाधान के लिए आप सब के सहयोग की प्रार्थना करता हूँ। आज देश में सभी जगह अव्यवस्था फैल रही है। राजनीति का प्रभाव इतना अधिक हो गया है कि बिना उसके दबाव के कोई काम आगे नहीं बढ़ रहा है । धर्म भी पंगु बन गया है, क्योंकि वह परम्परागत जड़ता लिए हुए है। और बदलाव के लिए उसमें प्रयत्ल का अभाव है। हम आपस में लड़-कट रहे हैं, और राजनीतिज्ञों के इसारे पर नाच रहे हैं। धार्मिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक सद्गुणों के रहते हुए भी हम निष्क्रिय क्यों हैं ? तथा हमारा प्रभाव जनता पर क्यों नहीं पड़ रहा है, परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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