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________________ भारतीय चिंतन में नये दर्शन के उदभावना की आवश्यकता नहीं स्वामी करपात्रीजी महाराज सनातन धर्म के प्रचारक तथा हिन्दू दर्शन के व्याख्याता स्वामी करपात्रीजी महाराज से जब "भारतीय चिन्तन परम्परा में नवीन दर्शन को सम्भावना" विषय पर बातचीत की गई तो उन्होंने उत्तर दिया कि हमारे षड्दर्शन वर्तमान कालिक समस्याओं के समाधान में समर्थ हैं, अतएव उनसे जब सभी समस्याओं का समाधान हो ही जा रहा है तो नये दर्शन की आवश्यकता नहीं है। नये दर्शन की आवश्यकता इसलिए प्रतीत हुई क्योंकि उस समय आत्यन्तिक और एकान्ततः दुःखों का नाश अन्य उपायों से सम्भव नहीं था। इसी प्रकार नये दर्शन की उद्भावना की आवश्यकता तो तभी समझी जानी चाहिए जबकि षड्दर्शनों से काम न चल सके। उन्होंने कहा-मैं समझता हूं, आधुनिक समस्यायें उन प्राचीन शास्त्रों की विवेचना से सुलझ सकती हैं। इसलिए नये दर्शन के प्रादुर्भाव को जरूरत ही नहीं है। जब स्वामी जी से आधुनिक समस्याओं के सन्दर्भ में--जाति, भाषा सम्प्रदाय, असमानता, प्रान्तीयता के संकीर्ण दायरे से ऊंचा उठकर सब में समानता की दृष्टि के लिए एक नये दृष्टिकोण पर बातचीत शुरू की गयी तो उन्होंने कहा- हमारे दर्शनों में कहीं भेदभाव नहीं है और न कहीं संकीर्णता है। हम तो मज़हब की बात नहीं करते हैं। हम तो मन्दिर में जाना भी उतना अनिवार्य नहीं घोषित करते। जैसा इसाई गिरिजाघर के लिए तथा मुसलमान मस्जिद के लिए करते हैं। हमारे यहाँ तो घर में बैठकर उपासना की बात कही गयी है। वह कहाँ बाधक है, समाज के अभ्युत्थान में। हमारा हिन्दूदर्शन कहीं भी विभेद को नहीं बतलाता और फिर समानता बरतना, तथा संकीर्णता का परित्याग कर समस्तप्राणिजगत में एकात्मकभाव जगाना यह तो हमारा उद्देश्य ही है। लेकिन यह नये दर्शन से ही नहीं सम्भव होगा। प्राचीन ग्रन्थों में भी विधि अर्थवाद के साथ प्रयुक्त हुई है और अर्थवाद आवश्यक होता है किसी भी बात के करवाने के लिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि व्यक्ति का वैशिष्ट्य हटा दिया जाय तथा समाज के सामान्य लोगों की तरह विशेष परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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