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________________ २२२ भारतीय चिन्तम की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं इसलिए अब दर्शन की अवधारणा को स्पष्ट करना चाहिए। दर्शन का मतलब दायित्वहीन या उधार खाते का चिंतन नहीं होना चाहिए। यद्यपि भारतीय दर्शन में भी अनुभव रहिन चिंतन हुआ है। क्योंकि यहां ऊह के द्वारा पुष्टि मानी गई है और शास्त्र इसके लिए प्रमाण बनते हैं। पर इससे भिन्न स्वतंत्र विचार या चिन्तन भी चल सकता है जिसमें मानवीय उद्देश्यों, आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विवेचन किया जाता है। श्रीसुधाकर दीक्षित (सं० सं० वि. वि. ) ने कहा कि उन्पुक्त चिन्तन को वेद के तथ्यों को परीक्षानुसारी चितन से जोड़ दिया जाय तो शायद अधिक उपयुक्त होगा। डा. गौरीशंकर दुबे ( गांधीविद्यासंस्थान राजघाट वाराणसी) ने कहाभारतीय दर्शन अध्यात्म के सम्बन्ध में अधिक जोर देता है लेकिन सांसारिक जीवन का सम्बन्ध यदि इसका विवेचन है तो वह स्पष्ट रूप से सामने नहीं आता। । दूसरी बात यह है कि जो विचार आगे नहीं चलता है और उसमें नवीनता नहीं आती है तो वह पिछड़ जाता है। विचार हमेशा आगे रहता है और उसका व्यावहारिक प्रयोग उसके पीछे चलता है। लेकिन भारतीय दर्शन में जो कुछ कह दिया गया है वही सब कुछ है, उसके बाद चिंतन की कोई ऐसी धारा विकसित नहीं हो पायी जो आज के समाज के लिए ग्राह्य हो; इसीलिए उसके मानने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन सीमित होती जा रही है। प्रो० डा. देवस्वरूप मिश्र ने कहा कि यह सत्य है कि हम वैज्ञानिक साधनों का उपभोग करते हैं पर हमारा कर्मानुष्ठान ऐसा होना चाहिए जिससे लौकिक एवं मोक्ष साधन दोनों ही अधिक उपयुक्त बन सके। प्रो.डा०आर०एस० मिथ (काशीहिन्दुविश्वविद्यालय) ने कहा कि धर्म से दर्शन के सम्बन्ध को बताने के लिए पहले दर्शन या धर्म की परिभाषा निश्चित की जानी चाहिए । धर्म के बारे में ईसाई धर्म में बताया गया है कि जीव का ईश्वर से सम्बन्ध स्थापित करना धर्म है। इस परिभाषा के अनुसार बौद्ध, जैन धर्म नहीं बनेंगे। भारत में धर्म तथा दर्शन अलग अलग नहीं रहा है। पर भारतीय दर्शन का चिन्तन अमूर्तात्मक है। क्या यह अमूर्तचिंतन समाज का भला कर पायेगा। समाज परक चिंतन को हम विदेश से निर्यात कर रहे हैं या विदेशी समाजवादी विचारों को आत्मसात कर परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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