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________________ भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण २१७ मोक्ष को भारतीय दर्शन की विशेषता बताया जाता है। किंतु पूर्ववर्ती मीमांसा दर्शन एवं लोकायत मोक्ष नहीं मानते। इसी प्रकार आधुनिकविचारकों में भी महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य आदि के दर्शनमोक्ष परक नहीं माने जा सकते हैं, फिर भी वे भारतीय दर्शन हैं। इस स्थिति में भारतीय-दर्शन की निश्चित परिभाषा करना कठिन है। किंतु उसके सन्दर्भ में कुछ विवरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। उन्होंने इस सम्बन्ध में पं. आनन्द झा के विचारों को प्रस्तुत करते हुए प्रायः उन्हीं के समान अपना मत व्यक्त किया कि जीवन में गहरी रुचि, जीवन की सार्थकता, विशेष अनुभव, लोकहित के आधार पर भारतीय दर्शन को समझा जा सकता है । श्रीसेम्पादोर्जे ( उपाचार्य-तिब्बती संस्थान, सारनाथ ) ने कहा कि दर्शन के साथ किसी देश को जोड़ना उचित नहीं है। उन्होंने अविद्या और उसके विरोधी विद्या के गम्भीर और व्यापक स्वरूप के विवेचन को ही भारतीय दर्शन का भेदक स्वरूप बताया। उन्होंने आस्तिक-नास्तिक वर्गीकरण की अपेक्षा भारतीय दर्शनों को बाध्यात्मिक दर्शन कहना अधिक उपयुक्त माना। उन्होंने विषयानुरोधी वर्गीकरण के पथ को स्पष्ट करते हुए कहा कि वस्तुवाद, अवस्तुवाद जैसा वर्गीकरण करना अधिक समीचीन होगा। प्रो.जगन्नाथोपाध्याय के विषय प्रस्तावना का विश्लेषण करते हुए श्री शिवजी उपाध्याय (सं० सं० वि. वि. ) ने धर्म-सम्प्रदाय निरपेक्ष दार्शनिक चिंतन, वर्गीकरण, विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में आग्रह युक्त चिंतन, व्याप्ति के नवीकरण तथा शास्त्रमुक्तचिंतन का सुझाव दिया। प्रो० महाप्रभुलाल गोस्वामी (सं०सं०वि०वि०) ने कहा कि यहाँ के दर्शनों का भारतीय नामकरण नितान्त अनुचित है किन्हीं पूर्ववर्ती शास्त्रों में इसका उल्लेख नहीं है। भारतीय चिंतकों में यह प्रवृत्ति भी नहीं रही है कि वे अपना उद्गम और विकास निर्देशित करें। श्रीरामशंकर त्रिपाठी ने कहा कि दर्शन का लक्ष्य सत्य का अन्वेषण हैं। यह सभी पर लागू होता है। किंतु दर्शन का उद्देश्य जीवन का परिष्कार करना भी है। यही भारतीय दर्शन की विशेषता है। प्रो. राजाराम शास्त्री ने कहा कि भारतीय दर्शनों का उद्गम वेदों के परिप्रेक्ष्य में हुआ। उनके अनुसार बैदिकसाहित्य में जो प्रत्यय, शब्द, भाषा विचारों परिसंवाद-३ २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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