SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण २१५ दर्शनों में समान रूप से परिग्रहीत हैं, ऐसे सामान्य विषयों के आधार पर ही विषय परक विभाजन किया जा सकता है। किन्तु ये विषय उन उन दर्शनों में वर्णित अन्यान्य विषयों से अनुबद्ध हैं। अतः यदि केवल समान विषयों के आधार पर ही विभाजन होगा तो अनुबद्ध विषय के छूट जाने से विषयों का समग्र रूप से बोध न हो सकेगा । अतः विषयपरक विभाजन की उचित उपयोगिता नहीं प्रतीत होती। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में केवल धार्मिक मान्यताओं और विश्वासों की पुष्टि की गयी है। यह उचित नही हैं क्योंकि सभी दर्शनों में ज्ञान को ही निःश्रेयस का प्रमुख साधन बताया गया है। वह ज्ञान धर्म और आचारों का नहीं किन्तु आत्म-अनात्म सभी पदार्थों के विषय का है। परवर्ती चिन्तक अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के साथ संवाद के लिए उनके बचनों का उल्लेख करते हैं। उसका निष्कर्ष यह नहीं कि उनका युक्तिवाद दुर्बल है या उत्तरवर्ती विद्वानों में स्वतंत्र चिन्सन की क्षमता नहीं है। क्योंकि उन्होंने पूर्ववर्ती चिन्तकों की बोत नयी शैली और नयी शब्दावली में प्रस्तुत की हैं। उन्होंने कहा कि यह ठीक है कि प्राचीन सूत्रों को आधार बना कर बाद में विस्तृत टीकायें लिखी जाती हैं। किन्तु यह देखा जाता है कि एक छोटे से सूत्र के ऊपर जो रचना होती है, उसमें ऐसे विचार भरे रहते हैं जो पूर्ण मौलिक होते हैं। अन्त में उन्होंने यह कहा कि हमारे देश का धर्मशास्त्र जो राजशास्त्रा, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्रा भी हैं, वे यहाँ के दर्शनों के अंग भी हैं । अतः उनके अध्ययन के साथ ही किसी दर्शन का अध्ययन पूरा होता है। इधर के सैकड़ों वर्षों में दर्शनों का अध्ययन धर्मशास्त्र के अध्ययन के बिना पूरा माना जाने लगा है। इसलिए भारतीय दर्शनों के सम्बन्ध में समाज की दृष्टि से पलायनवादिता का आक्षेप होता है। उपर्युक्त तीन विचारों के प्रस्तुतीकरण के अनन्तर उस पर विचार विमर्श में निम्नलिखित विद्वानों ने भाग लिए-श्रीरामशंकर त्रिपाठी, श्री हेब्बारशास्त्री, श्रीकेदारनाथ मिश्र, श्री सी० एन मिश्र, श्री सेम्पा दोर्जे, श्रीशिवजी उपाध्याय, डॉ. महाप्रभुलाल गोस्वामी, प्रो०राजाराम शास्त्री, डॉ. रेवतीरमण पाण्डेय, पं० विश्वनाथशास्त्री दातार, पं. सुधाकर दीक्षित, डा० गोकुलचन्द जैन और डाः नरेन्द्रनाथ पाण्डेय। परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy