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________________ भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण डा० सी० एन० मिश्र १. भारतीय दर्शन से क्या समझा जाय ? दर्शन में भारतीयता क्या है ? जिससे भारतीय दर्शनों का असाधारण पहचान समझो जाय ? हमारे विचार से भारतीय दर्शन उसे समझना चाहिए जिसका उद्भव और विकास भारत में हुआ हो। यों तो कुछ पाश्चात्य लेखकों के मत से भारत में साधारणतया वास्तविक दर्शन नहीं रहे हैं। जो कुछ हैं वे पौराणिक कथानक एवं आचारिक मतों के रूप में काव्य और आस्था से सम्पृक्त हैं। Even the theories of Oriental peoples the Hindus, Egyption, chinese, Consist, in the main, of mythological and ethical doctrines, and are rarely Complete going systems of thought : they are Pervaded with poetry and faith,' [ A History of Philosophy, Intro p.7 by Frank Thilly.] कुछ वर्तमान समय के पाश्चात्य विचार में पले हुए 'ज्ञानलवदुर्विदग्ध' भारतीयों से भी उक्त विचार की प्रतिध्वनि सुनने को मिलती है। इस विषय पर विचार करने का यह उचित अवसर नहीं है, अतः इस प्रसंग में अभी केवल यही कह देना पर्याप्त होगा कि 'मुखमस्तीति वक्तव्यं दशहस्ता हरीतकी।' 'दश' धातु ज्ञान सामान्य' के अर्थ में प्रयुक्त होता है अतः 'दर्शन' शब्द का अर्थ होगा वह शास्त्र जिसके द्वारा वास्तविकता का ज्ञान अर्थात् साक्षात्कार हो। (दृश्यते, ज्ञायते, साक्षात्क्रियते अनेन शास्त्रंण इति दर्शनम् )। पाश्चात्य दर्शन का सम्बन्ध तत्त्व के परोक्षज्ञान से रहा है इसलिए वह मुख्यतः सैद्धान्तिक है। यही कारण है कि वहाँ के दर्शन के लिए व्यावहारिकता कोई अनिवार्य पक्ष नहीं है। किन्तु भारतीय दर्शन का सम्बन्ध साक्षात्कार से है। इसी आशय को प्रगट करते हुए पञ्चदशीकार कहते हैं परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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