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________________ 'भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण' संगोष्ठी के कुछ विचारणीय प्रश्न राधेश्यामधरद्विवेदी 'धर्मदर्शन-संस्कृति' समिति ने सभी विभागों से तत्तद्विभागानुकूल विषयों पर परिचर्चा, वादकथा एवं विमर्श से सम्बन्धित विषयों की रूपरेखा प्रस्तुत करने के लिए कहा था। उसी सन्दर्भ में तुलनात्मकधर्मदर्शन विभाग ने 'भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण' विषय पर एक संगोष्ठी कराने का प्रारूप प्रस्तुत किया। तदनुसार इस संगोष्ठी के संयोजक श्रीराधेश्यामधरद्विवेदी ने वर्गीकरण से सम्बन्धित कतिपय प्रश्नों को निम्नलिखित रूप में उपस्थित करते हुए कहा १- भारतीय दर्शन से क्या समझा जाय ? दर्शन में भारतीयता क्या है ? जिससे भारतीय दर्शनों की असाधारण पहचान समझी जाय । - २-दर्शनों का क्या आस्तिक नास्तिक विभाजन उचित है अर्थात् क्या आस्तिक एवं नास्तिक दृष्टि से निरपेक्ष भारतीय दर्शनों का कोई अपना स्वतन्त्र स्वरूप नहीं है, यदि है तो उसके लक्षण क्या हैं ? ३-भारतीय दर्शनों में विषयपरक भी चिन्तन हुए हैं, उदाहरण के रूप में द्वैतवाद, अद्वैतवाद को ही लें। देखा जाता है कि अवान्तर भेदों के साथ शाङ्करवेदान्त, शून्यवाद, विज्ञानवाद तथा अनेक तान्त्रिक दर्शन अद्वैतवादी ही हैं। इसी प्रकार जीव जगत के संदर्भ में या आत्मा, परमात्मा के संबंध में द्वैतवाद के भी विभिन्न रूप हैं, उसके अंतर्गत सांख्ययोग, न्यायवैशेषिक, जैन, वैभाषिक, सौत्रान्तिक, विभिन्न वैष्णव-वेदान्त तथा अनेक तान्त्रिक दर्शन आ जाते हैं। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय दर्शनों का विषयपरक वर्गीकरण किया जा सकता है। स्पष्ट है कि ज्ञान का विषयपरक विकास दर्शनों के परस्पर आदान-प्रदान एवं खण्डन-मण्डन के माध्यम से हुआ है, इस स्थिति में सांप्रदायिक वर्गीकरण को छोड़ कर विषयपरक वर्गीकरण को स्वीकार करने में क्या बाधा होगी? परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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