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________________ 'सत्य अहिंसा और उनके प्रयोग' संगोष्ठी का संक्षिप्त विवरण १४५ में तथा मनुष्यों के आपसी सम्बन्धों में। अहिंसा छोटे समुदाय से प्रारम्भ होकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय तक चलती है। अहिंसा धर्म एवं नैतिक सद्गुण है। अहिंसा का मूल्य गांधी की दृष्टि में हिंसा की शक्ति से लाख गुना अधिक है। गांधीजी समाज को नैतिक मूल्यों से अनुप्राणित करना चाहते थे। वह उद्देश्य' को नैतिकता परक मान कर उत्तरदायित्व की नैतिकता को भी स्वीकार करते थे। इसीलिए उन्होंने राजनीति को आध्यात्मीकृत करने का प्रयत्न किया। सत्य यदि समाज व्यवस्था का मूल आधार है तो अहिंसा सत्य पर आधारित समाज निर्माण का साधन ।। काशी हिन्दूविश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. के. सी. मिश्र ने बताया कि गांधोजी आज के युग के बहुत बड़े सुधारवादी नेता थे। उन्होंने अपने व्यवहार से धर्म एवं सामाजिक लोगों के चिन्तन में अद्भुत परिवर्तन लाया। यह उनके निश्छल मानवीय समस्याओं के समाधान की विधि से ही बन पाया। वह बुनियादी शिक्षा, ग्रामीण उद्योग, नैतिकोत्थान, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान, धर्म एवं कुटीर उद्योग तथा अन्तर्राष्ट्रीय हित के चिन्तन के द्वारा मानव जाति का भला कर सके । अन्त में गोष्ठी का समापन करते हुए प्रो. बदरीनाथ शुक्ल (कुलपति, सम्पूर्ण नन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय, वाराणसी) ने कहा-गांधीजी इस युग के महान विचारक, सन्त तथा महात्मा थे। हमारे यहां शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए-स्वधर्मे निधनं श्रेयः। इसका मूलतः तात्पर्य है अपने कर्तव्यों का निर्वाह। जो जिस व्यक्ति का समाज में कर्तव्य निर्धारित हो; उसका पालन आवश्यक है। यह ही दायित्व की भावना है। शास्त्रों में धर्म का कर्तव्य अर्थ में उद्बोधन है—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह को सार्वभौम धर्म कहा गया है। इन धर्मों के बाद भी कुछ विशेष कर्तव्य समाज में निर्धारित होते हैं। मनुष्य का यह दायित्व है कि वह सार्वभौम धर्मों का पालन करते हुए अपने अपने दायित्वों का निर्वाह करे। इसी अर्थ में हमारी वर्णव्यवस्था तथा आश्रमव्यवस्था का विधान था। गांधीजी उक्त पाँच सार्वभौम धर्मों में से सत्य और अहिंसा पर विशेष बल देते थे। 'सत्यं वद' यह धर्म में अक्सर कहा जाता है। इसका तात्पर्य है मनुष्य जो कुछ कहे, सत्य कहे, तथा जो कहे, उसको करे । सत्य की प्राप्ति तभी सम्भव है जब कि यथार्थ का बोध हो। यह बोध सार्वभौम धर्मों के अनुपालन से होता है। अहिंसा का अर्थ है हिंसा न करना। धर्म का अर्थशास्त्रों में विधिपरक भी होता है निषेधपरक भो। यहाँ अहिंसा का अर्थ हिंसा की परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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