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________________ १३८ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं ___ गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए अखिल भारतीय शान्ति सेना के अध्यक्ष श्रीनारायण भाई देसाई ने कहा गांधीजी के विचार अध्यात्म में प्रतिष्ठित थे तथा उनका प्रत्येक विवेचन वैज्ञानिक था। उनके अध्यात्म को उनकी सामाजिक वैज्ञानिक दृष्टि के साथ संजो कर देखने की आवश्यकता है उससे उसको हटाने पर रिक्तता ही हाथ लगेगी। विश्वविद्यालयों में और विशेषकर परम्परावादी विश्वविद्यालयों में गांधी विचारों पर चिन्तन, मनन तथा कार्य सम्पन्न होना चाहिए, पर भारतीय विश्वविद्यालयों में गांधी जी पर बहुत कम काम हो रहा है। वैसे विश्वविद्यालयों की चहार दिवाली में गांधीजी बन्द नहीं किये जा सकते। गांधीजी के साथ अपने जीवन का सम्बन्ध बताते हुए उन्होंने गांधीजी के खादी कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय भाषागतनीति की चर्चा की तथा कहा-गांधीजी ने जो कहा और जिस रूप में वह थे, वह ही गांधी विचार दर्शन है। उनकी विचारधारा का सार मुख्य रूप से तीन ही है (१) उनका आदर्शवाद (२) रचनात्मक कार्य ( ३ ) सत्याग्रह। ये तीनों परस्पर सम्बद्ध हैं। गांधीजी व्यक्तिगत गुणों को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाते थे अर्थात् सबमें उन मूल्यों की प्रतिष्ठा करते थे। इसी क्रम से वह संस्कृति के जरिये क्रान्ति का संचार करते थे। यह संचार उनकी साधना के जरिए होता था। वह साधना पथ सत्याग्रह का था। इस प्रकार रचनात्मक लक्ष्य के लिए सत्य पर आरूढ़ हो संघर्ष का मार्ग अपनाते थे। गांधी युग से आज के युग में एक परम्परा ( जेनरेसन ) का गैप है। पर यदि आने वाले कल में गांधी उपयुक्त लगते हो तो बर्तमान सन्दर्भ में भी गांधी का मूल्य है। विषमता समाप्त हो और दासता भी न रहे, यही गांधीजी का मन्तव्य था। उनकी रचनात्मक प्रक्रिया से यह प्राप्त किया जा सकता है। आज के विश्व में गांधी के मन्तव्यों से परायापन एवं प्रदूषण की समस्या को भी दूर किया जा सकता है। मानवीय संकटों की जड़ में यह परायापन की भावना है। इस परायेपन से दूसरे व्यक्ति के प्रति ममत्व घटता है। दिल में दूसरे के लिए ममत्व न रखना ही परायापन है। विज्ञान ने दूरियाँ समाप्त की हैं पर संकटों को समाप्त नहीं किया है। वह एक जगह के प्रदूषण को दूसरे जगह पर वैज्ञानिक साधनों से ही संक्रमण कर देता है। अतः विज्ञान ने सहुलियत के साथ खतरा भी दिया है। परायेपन से पूँजीवाद विकसित होता है। पराया पन से ममत्व का अभाव भी बढ़ता है। गाँव में हर एक, हर एक को नजदीक से समझता है उसमें सांस्कृतिक एकता होती है। यह सांस्कृतिक एकता पड़ोसीपन में है, गांधी इसके हिमायती थे। गंगाजल की पवित्रता से कालरा के कीटाणु समाप्त हो जाते थे पर अब वैज्ञानिक कारखानों परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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