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________________ सत्य और अहिंसा की अवधारणा : १०१ का निर्माण कराना चाहते । गांधी को ज्ञात था कि ऐसा समाज बनाना बहुत ही कठिन है. शायद असम्भव है। सामान्यतः मनुष्यों में मोह, द्वेष, क्रोध, ईष्या आदि की पाशविक भावनाएँ बहुत प्रबल होती है और उनको नियंत्रित करने वाली वृत्तियाँ कमजोर होती हैं। लेकिन मानव की श्रेष्ठता और विशिष्टता इसी बुनियादी तथ्य पर आश्रित है कि वह स्वार्थ केन्द्रित पाशविक भावनाओं पर नियन्त्रण करने का सतत प्रयास करता है। गांधी इसी दष्टि से मनुष्य और उसके समाज की संरचना में नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों को महत्त्व देते थे। उन्होंने सत्य पर इसीलिए बल दिया कि मनुष्यों में पाशविक भावनाओं का यदि उन्नमूलन न भी हो सके तो कम से कम उनका वेग और प्राबल्य कम हो। और प्रेम, सहानुभूति, सहयोग त्याग, परदुःखकातरता आदि उदात्त मानवीय भावनाओं की शक्ति बढ़े। यह आसान नही है, लेकिन उसके लिए निरन्तर प्रयत्नशील होना और हर परिस्थिति में उसे न छोड़ना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। सारी विषम स्थितियों के बीच इस काम में सतत संलग्न रहने को गांधी जी मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म मानते थे। गाँधीजी समाज के संस्थागत पुननिर्माण से पहले सही दृष्टिकोण निर्मित करना चाहते थे। यदि व्यक्ति की दृष्टि ठीक होगी तो उसका आचरण भी ठीक होगा। सम्यक दृष्टि वाले व्यक्ति ही समाज की राजनीति तथा आर्थिक संरचना में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकते हैं तथा अन्याय, शोषण, स्वार्थ तथा लोलुपता से मुक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं। इसके लिए गांधीजी सत्य को जीवन में सर्वोच्च महत्त्व देना अनिवार्य समझते थे। अत: गांधी की बुनियादी अवधारणाओं पर विचार करते समय उनकी सामाजिक दृष्टि और मनुष्य की प्रवृत्तियों के बारे में उनकी सामाजिक दृष्टि को ध्यान रखे बिना उन अवधारणाओं का समाज शास्त्रीय विश्लेषण नहीं किया जा सकता। गांधीजी मानते थे कि सत्य का अनुभव मनुष्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के बीच ही होता है। वे कहते थे, “सत्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता हैं। सत्य के बिना कोई समाज संगठित नहीं हो सकता।” इससे स्पष्ट है कि वे सत्य' को सामाजिक स्तर पर समाज के संगठन का आधार मानते थे। उनकी दृष्टि में असत्य और धोखे पर समाज खड़ा नहीं होता। यदि समाज में असत्य तथा धोखे का अस्तित्व है तो उससे यह सिद्ध नहीं होता कि उनके ऊपर समाज का संगठन निर्मित होगा। समाज में असत्य हमेशा विद्यमान रहता है किन्तु वह समाज के गठन का आधार नहीं बन सकता। कम से कम गांधी की दृष्टि में समाज का स्वरूप ऐसा ही है । समान्यतया जनमानस में महात्मा गांधी का नाम अहिंसा के सिद्धान्त के साथ जितने घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है, उतना सत्य की अवधारणा के साथ नहीं। x x x x परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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