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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं बुनियादी आवश्यकता का नियंत्रण दिल्ली से होता है। गाँवों में स्वराज्य या स्वशासन नाम की कोई चीज नहीं है। देश के नागरिक निष्क्रिय, अकर्मण्य और शासनमुखापेक्षी हो गये हैं। शिक्षा स्वास्थ्य अन्न के सम्बन्ध में वे सरकार पर पूर्णतया निर्भर करते हैं। जिस देश में लोक जीवन इस प्रकार परावलम्बी हो जाता है वह अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा भी समय आने पर नही कर सकता। नौकरशाही और बड़े-बड़े राजनेताओं के संकेतों में समाज का जीवन चलाना बड़ी खतरनाक बात है। यह लोकतन्त्र की अन्येष्टि क्रिया और अधिनायक तन्त्र की पुष्ट भूमि की स्थापना का उपक्रम है।
इसी सन्दर्भ में कुछ लोगों का यह कहना है कि विकेन्द्रीकरण समय के चक्र को पीछे घुमाना है। किन्तु ऐसे लोग यह नहीं समझते की आज बड़े-बड़े कल कारखानों और मशीन की संस्कृति से मनुष्य ऊब चुका है। पाश्चात्य देशों में भी जहाँ मशीन की संस्कृति चरम सीमा पर है, एक उग्र प्रतिक्रिया मशीन की संस्कृति के विरुद्ध हो रही है। बड़े-बड़े कल कारखानों ने वातावरण प्रदूषित कर दिया है, नदियों के जल को विषाक्त बना दिया है, यहाँ तक की मनुष्य को शुद्ध वायु और शुद्ध पीने का पानी भी उपलब्ध होना कठिन है। मशीन की संस्कृति ने एक काम और किया। उसने महानगरों को जन्म दिया है, जिनका जीवन नारकीय जीवन है। इन महानगरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये जंगल के जंगल काट दिये जाते हैं और हरीतिमा के अभाव में मनुष्य का जीवन ही खतरे में पड़ गया है। क्लब आफ रोम ( Club of Rome) की एक योजना के अन्तर्गत विश्व के उच्च कोटि के वैज्ञानिकों ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह घोषणा की है कि आगामी शताब्दी के मध्य विन्दु तक मनुष्य पृथ्वी के सभी प्राकृतिक साधनों को समाप्त कर देगा। मिट्टी का तेल, कोयला और पानी जो ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं, समाप्त हो जायेगें। उन्होने इस गम्भीर स्थिति को पुनः दुहराया है और विश्व को यह चेतावनी दी है कि वे अपने कार्यों में अपव्यय को रोकें और अपनी आवश्यकताओं को कम करें, जिससे मनुष्य प्राकृतिक साधनों का प्रयोग अधिक समय तक कर सके। इस सन्दर्भ को प्रस्तुत करने का उद्देश्य यह है कि गांधीजी ने बड़े-बड़े कल कारखानों के सम्बन्ध में जो कुछ कहा, वह आज के समझदार वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। और गांधीजी के प्रयोग समय के चक्र को पीछे घुमाने के प्रयोग नहीं है, प्रत्युत वे न केवल आज की स्थिति में बल्कि आगामी शताब्दी में और उसके आगे भी विनाश के अन्धकार में दीपक की शिखा भी क्रांति मार्ग दर्शन करते रहेगें। मनुष्य
परिसंवाद -३
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