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________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं हिन्दू के हाथों ही गोली के शिकार हुए तो उन्होंने जैसे अपने रक्त के अर्घ से सामाजिक एकता की उपासना की। ___ गांधी जी का सबसे बड़ा प्रयोग सत्य और अहिंसा का प्रयोग है। ऐसा नहीं है कि गांधी जी इस प्रयोग की कठिनाइयों को नहीं समझे, किन्तु फिर भी उनका विश्वास था कि कठिनाइयों के कारण जीवन के किसी उच्चतम आदर्श को नहीं छोड़ा जा सकता । सत्य और अहिंसा के प्रयोग व्यक्तिगत स्तर पर निरन्तर होते रहे हैं। किन्तु गांधी जी का प्रयोग एक अर्थ में अद्वितीय' था और इतिहास में इस प्रकार का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। उन्होंने पहली बार सत्य और अहिंसा के व्यक्तिगत सिद्धान्त को लोक सिद्धान्त के रूप में प्रयुक्त किया। उन्होंने १९१९ में असहयोग आन्दोलन चलाया। ३०-३१ में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नेतृत्व किया और १९३९ में व्यक्तिगत सत्याग्रह के रूप में भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की। देश के करोड़ों नर नारियों को और सम्पूर्ण जन मानस को उन्होंने आन्दोलित कर दिया और यह सब आन्दोलन सत्य और अहिंसा के आधार पर चलाये गये। गांधी जी यह जानते थे कि इसमें हिंसा की सम्भावनायें हैं और हिंसा हुई भी । किन्तु इतने बड़े आन्दोलन के सन्दर्भ में और मनुष्य की दुर्बलताओं को देखते हुए ये हिंसायें नगण्य थी। एक परतन्त्र और मृत राष्ट्र को चेतना से स्पंदित करने का श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो वह गांधी जी ही थे गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का प्रयोग वर्तमान शताब्दी के तीसरे और चौथे दशक में किया था जबकि दो विश्व युद्धों की विभीषिका से समस्त विश्व उत्पीड़ित था। प्रश्न यह है कि क्या वह प्रयोग आज २० वी शताब्दी के अन्तिम चरणों में उपयोगी है अथवा नहीं । आज तृतीय विश्व युद्ध के जो पिछले २ विश्व युद्धों से भी अधिक भयंकर होगा, के बादल आकाश में छाये हुए हैं। तथा कथित सभ्य देशों ने इतने विध्वंसकारी बम एकत्र कर लिये हैं कि उनसे एक बार नहीं १० बार इस धरती को प्राणहीन किया जा सकता है। इसीलिये पाश्चात्य देशों के समझदार लोग ऐसे मार्गों की तलाश में हैं जिन पर चलकर वे मानवता को महानाथ से बचा सकें । संयुक्त राष्ट्र संघ भी ऐसे उपायों की खोज में है। किन्तु वह कुछ बड़े राष्ट्रों के स्वार्थों से आवद्ध एवं प्रभावित रहने के कारण समस्या का कोई समाधान नहीं निकाल पाता। आज विनाश के कगार से अलग होने का रास्ता वही है जो गांधीजी ने प्रतिपादित किया था अर्थात सत्य और अहिंसा के आधार पर ही मानव परिसंघाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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