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________________ भारतीय दर्शनों की दृष्टि से गांधी विचारों का विवेचन नहीं हो जाता, तब तक मुझे अपने यह सापेक्ष सत्य ही मेरा प्रकाश है, एवं संकीर्ण है, कटार की धार की भाँति शीघ्र प्राप्तव्य है । अपने विश्वास में सापेक्ष सत्य की धारणा पर आधारित रहना है । वही कवच एवं ढाल है । यद्यपि यह मार्ग लम्बा तेज है किन्तु यह मेरे लिए सर्वाधिक सरल एवं मुझे ईश्वर का परम सत्य का धूमिल आभास हुआ है एवं दिन प्रतिदिन यह मेरा विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि एक मात्र वही सत्य है, अन्य सभी असत्य ।' पुनः वे लिखते हैं : 1 मेरे विचार से इस संसार में सुनिश्चित खोजना भूल है क्योंकि यहाँ मात्र ईश्वर ही सत्य है, अन्य सब कुछ असत्य एवं अनिश्चित । जो कुछ भी चारों ओर हो रहा है अनिश्चित एवं क्षणिक है, किन्तु इन सबमें सत्य छिपा है । वह भाग्यशाली है जिसे इस सत्य का आभास मिल जाता है । इसी सत्य का अन्वेषण परमशुभ है ।" वे पुनः लिखते हैं : मानवीय भाषा ईश्वर को व्यक्त करने में असमर्थ है । ३ ऐसे स्थलों पर गांधी पर औपनिषद - 'यतो वाचो निवर्तन्तेऽप्राप्य मनसा सह' का प्रभाव स्पष्ट है । ईश्वर के अनन्त रूप हैं, मेरे लिए वह सत्य एवं प्रेम हैं, ईश्वर नीतिशास्त्र एवं नैतिकता है, ईश्वर अभयत्व है, ईश्वर जोवन एवं प्रकाश का स्रोत है । ..... ईश्वर अन्तःकरण है तथापि इन सबसे परे हैं । वह उनके लिए सगुण है जो उसकी सगुणात्मक उपस्थिति चाहते हैं । वह शरोरी है जो उसका स्पर्श चाहते हैं । वह अद्वितीय सत्ता है । वह मात्र सत्ता है, जिसका उसमें विश्वास है । वह सब में है, सबसे ऊपर है, हम सबसे परे हैं । ४ ८१ गांधी यद्यपि ईश्वर की सत्ता सिद्धि करने के लिए पारम्परिक तर्कों में विश्वास नहीं करते । उन्होंने बार-बार इसे स्पष्ट कर दिया है कि मानवीय ज्ञान ईश्वर को जानने में सर्वथा असमर्थ है । किन्तु कभी-कभी उन्होंने ईश्वर को तर्क द्वारा भी प्रतिष्ठित करने की कोशिश की है । उद्देश्यमूलक तर्क का कितना सुन्दर उदाहरण हैं । वे लिखते हैं कि कुछ सीमा तक ईश्वर की सत्ता तर्क से भी स्थापित की जा १. गांधी ऐन आटोवायोग्रेफी, पृ० ७ २ . वही, पृ० ३०८ ३. वही, पृ. ३४ ४. यंग इण्डिया, मार्च ३, १६२५ ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद - ३ www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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