SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं आर्थिक विषमता से रहित, शोषण रहित समाज के निर्माण का सिद्धान्त है। समाज के आदर्श सिद्धान्तों में इसको सर्वोच्च स्थान दिया जा सकता है। यह सिद्धान्त प्राचीन भारतीय मनीषियों को शुभ कामना 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्' आदि पर आधारित होते हुए नये परिवेश के लिए अत्यन्त आकर्षक, रोचक और निर्दोष सिद्धान्त है। किन्तु इसकी व्यवहारिकता में सन्देह है। इस प्रकार के समाज निर्माण में अहिंसा और सत्याग्रह जैसे साधनों का प्रयोग अत्यन्त दुर्बल और अप्रभावी होता है। वर्गभेद वाला पूँजीवाद मानवीय प्रवृति के अनुकूल होने के कारण सरलता से व्यवहार में आ जाता है। समाजवाद, संघर्ष और शस्त्र क्रान्ति में विश्वास रखने के कारण शीघ्र प्रभावशाली बन जाता है। किंतु सर्वोदय का सिद्धान्त न तो मानवीय सहज प्रवृति के अनुकल है और न इसके साधन में ऊपरी दबाव है, अतः इसकी व्यावहारिकता में सन्देह है। - इसी प्रकार अन्य सिद्धान्त रामराज्य, स्वराज्य, न्यास, सर्वधर्म-समभाव, बेसिक शिक्षा आदि को आदर्शरूपता को स्वीकार किया जा सकता है किंतु इनके व्यावहारिक पक्ष को स्वीकार करने में अनेक कठिनाइयाँ दीख पड़ती हैं जिनका विवेचन इस छोटे निबन्ध में सम्भव नहीं है। गांधीदर्शन का एक और महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हैं साध्य-साधनविवेक । गांधीदर्शन में साध्य की शुद्धता, पवित्रता और श्रेष्ठता के साथ साधन की शुद्धता, पवित्रता और श्रेष्ठता पर अधिक बल दिया गया है किंतु जिस समाज में पद और अर्थ को सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार माना जाता हो। पद प्राप्ति के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं को उत्तीर्णं करना पड़ता हो; शिक्षित होने का मापदण्ड विश्वविद्यालयीय परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना मात्र हो. किसी भी साधन से धन का अधिकाधिक संग्रह ही समाज में उच्च स्तर प्राप्त करने का उपाय हो। वहाँ साधन की पवित्रता की सम्भावना बहुत ही कम हो जाती है। अपने को गांधीवादी कहने वाली राजनैतिक पार्टियों तथा राजनेताओं के व्यवहार विश्वविद्यालयों के छात्रों एवं अध्यापकों के सम्बन्ध और व्यवहार तथा बढ़ती हुई अनुशासनहीनता और आर्थिक विषमता एवं अपराधवृत्ति आदि को देखते हुए यह कहना पड़ता है भारतीय समाज के व्यवहार में साधन की पवित्रता की ओर से ध्यान हटता जा रहा है। गांधीदर्शन के सिद्धान्त और व्यवहार के उक्त विवेचन से यह संकेत मिलता है कि गांवी दर्शन की व्यवहारिकता का एक विशिष्ट अर्थ है। अर्थात् गाँधी दर्शन को परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy