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________________ मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के जीवनदृश्य .४० खड़ा दिखाया गया है। झूले के नीचे दो बैठी आकृतियाँ हैं। आगे बाईं ओर कृष्ण को पद्मोत्तर नामक गज का वध करते दिखाया गया है। जैन परम्परा में उल्लिखित है कि जब कृष्ण और बलराम मथुरा के प्रवेश-द्वार पर पहुँचे, तब कंस के आदेश पर महावतों ने पद्मोत्तर एवं चम्पक नामक मत्त गजों को उनकी ओर छोड़ दिया । कृष्ण ने पद्मोत्तर एवं बलराम ने चम्पक का वध किया था । दृश्य में कृष्ण के पैरों के समीप झुके हुए शुण्डवाली और घुटनों के बल बैठी एक गजाकृति उत्कीर्ण है, जो कृष्ण द्वारा गज को वशीकृत किये जाने का संकेत देती है। कृष्ण का दाहिना हाथ गज की गर्दन पर रखा है, जबकि बायाँ हाथ प्रहार की मुद्रा में ऊपर की ओर उठा है । समीप ही कृष्ण द्वारा अर्जुन वृक्षों को उखाड़ने का दृश्य उत्कीर्ण है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उल्लेख मिलता है कि कृष्ण के यत्र-तत्र भाग जाने से परेशान यशोदा ने एक दिन उन्हें ओखली से बाँध दिया और पड़ोस के घर में चली गयीं । ततपश्चात् शूर्पक का पुत्र ( पूतना का भाई) अपने पैतृक वैमनस्य का स्मरण कर वहाँ आया और उसने एक दूसरे के पास दो अर्जुन वृक्षों का रूप धारण किया। वह कृष्ण को ओखली - सहित कुचलने के उद्देश्य से दोनों वृक्षों के मध्य ले गया । पर कृष्ण ने अर्जुनवृक्षों को उखाड़कर उसका अन्त कर दिया । इस दृश्य में कृष्ण को युगल वृक्षों के ऊर्ध्वभाग को मजबूती से पकड़े हुए दिखाया गया है । दक्षिणी पट्ट में एक बालक को कदम्ब - वृक्ष की शाखाओं से झूलते हुए दिखाया गया है । वृक्ष के नीचे दो बैठी पुरुष आकृतियाँ एवं दो अन्य दण्डधारी आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं, जो सम्भवतः गोपों की हैं। एक आकृति अत्यन्त स्वाभाविक रूप से सिर के पीछे दण्ड का सहारा लिये खड़ी है । यह दृश्य गोकुल - निवासियों के दैनिक जीवन की सुन्दर झलक प्रस्तुत करता है । इन आकृतियों के ऊपर पाँच दुग्ध पात्र निरूपित हैं। तत्पश्चात् एक बड़ी आकृति अपने शरीर का पूरा भार दण्ड पर दिये अत्यन्त स्वाभाविक रूप से खड़ी दिखाई गई है, जिसके सम्मुख छह गो-आकृतियाँ बनीं हैं । यह उत्कीर्णक कृष्ण द्वारा गाय चराने से सम्बद्ध है। इसके बाद दो स्थानक स्त्री-आकृतियों को मक्खन निकालते दिखाया गया है। समीप ही बालरूप कृष्ण पात्र से मक्खन निकालने का प्रयास करते निरूपित हैं । ४१ I पश्चिम की ओर (बायें से) युक्त कंस को एक छत्रयुक्त ऊँचे सिंहासन पर आसीन दिखाया गया है । कंस के दाहिने हाथ में सम्भवतः खड्ग प्रदर्शित है, जबकि बायाँ हाथ सशस्त्र सैनिकों को कोई निर्देश देने की मुद्रा में ऊपर की ओर उठा है । तत्पश्चात् दो पुरुषाकृतियों के साथ दो गज एवं तीन अश्वाकृतियाँ अंकित हैं । पुरुषाकृतियों में से एक गज की सूँड़ पर किसी नुकीली वस्तु से प्रहार कर रही है, जबकि दूसरी आकृति को दूसरे गज का पैर ऊपर उठाये हुए दिखाया गया है । यह दृश्य कृष्ण और बलराम द्वारा क्रमशः पद्मोत्तर एवं चम्पक नामक गजों के युद्ध से सम्बद्ध है। इसके बाद एक छज्जेवाला Jain Education International 69 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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