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________________ 680 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 आठवें वासुदेव नारायण के अतिरिक्त अन्य सभी वासुदेवों ने गौतम गोत्र में जन्म लिया, जबकि नारायण का जन्म काश्यप गोत्र में हुआ । वासुदेवों के सिर पर चक्र एवं समीप ही एक चामरधारी होता है । युद्ध में प्रतिवासुदेवों का वधकर्ता होने के कारण सभी वासुदेव मरणोत्तर नरक के भागी होते हैं । १७ श्वेताम्बर परम्परा में वासुदेवों को शंख (पांचजन्य), चक्र, गदा (कौमोदकी), धनुष (शा), खड्ग (नन्दक)- धारी बताया गया है । साथ ही उनके कौस्तुभ (मणि) एवं वनमाला से सुशोभित होने का भी उल्लेख है । दिगम्बर-परम्परा में उपर्युक्त आयुधों के साथ-साथ खड्ग के अलावा दण्ड और शक्ति का भी उल्लेख है । १९ १८ शलाकापुरुषों की सूची में उल्लेखित ९ प्रतिवासुदेवों में से आरम्भिक आठ को विद्याधर माना गया है, जबकि नवें की गणना मनुष्य रूप में की गया है । ब्राह्मण-परम्परा में भी वासुदेवों के प्रतिद्वन्द्वियों का उल्लेख है, जो सामान्यतया असुर या राक्षस कहला थे । इनमें तारक कार्तिकेय द्वारा मारा गया, जबकि मधु, बलि, रावण एवं जरासन्ध देवता और मनुष्यों के शत्रु थे, जो विष्णु के अवतार - स्वरूपों द्वारा मारे गये । जैन परम्परा में प्रह्लाद का उल्लेख प्रतिवासुदेव के रूप में किया गया है, जबकि ब्राह्मण-परम्परा में उनकी गणना एक महान् यति और भागवत - सम्प्रदाय के प्रथम उपासक के रूप में की गयी है । आठवीं से १३वीं शती ई. के मध्य इन शलाकापुरुषों से सम्बद्ध स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना की गयी, जिनमें पउमचरिय, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, कहावली, तिलोयपण्णत्ति, महापुराण एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रमुख हैं । ११वीं एवं १३वीं शती ई. के मध्य गुजरात एवं राजस्थान के जैन मन्दिरों पर कुछ शलाकापुरुषों को मूर्त अभिव्यक्ति मिली। इन स्थलों पर इनके जीवन से सम्बद्ध कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं को विस्तारपूर्वक उत्कीर्ण किया गया । ज्ञातव्य है कि प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ महावीर का १६वाँ पूर्वभव है । कुम्भरिया (बनासकांठा, गुजरात, ११वीं शती ई.) के महावीर एवं शान्तिनाथ के मन्दिरों में महावीर के जीवनदृश्यों के उत्कीर्णन के सन्दर्भ में त्रिपृष्ठ के जीवन की सिंहवध तथा संगीतज्ञों को दण्डित किये जाने की कथाओं को भी रूपायित किया गया है। दिलवाड़ा (आबू, सिरोही, राजस्थान) के विमलवसही (ल. ११५०ई.) एवं लूणवसही । (१३वीं शती ई. का पूर्वार्ध) के वितानों पर कृष्ण के कालियामर्दन तथा कारागार में कृष्ण जन्म एवं बलिवामन-कथा के सन्दर्भों का उत्कीर्णन पूर्णरूप से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित से निर्दिष्ट है । जैन परम्परा के प्रथम चक्रवर्ती भरत आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र थे । इनकी माता का नाम सुमंगला था । ऋषभनाथ ने दीक्षा ग्रहण करने से पूर्व भरत को अयोध्या का शासक बनाया तथा अपने दूसरे पुत्र बाहुबली को, जिसका जन्म उनकी दूसरी पत्नी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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