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________________ जैनधर्म के तीर्थंकर, आचार्य और वाङ्मय १३ बल्कि, जैनग्रंथों का जो अन्तिम रूप आज पाया जाता है, वह गुप्तकाल में, ईसवी ४५४ में, काठियावाड़ की वलभी नगरी में सम्पन्न जैन संगीति में सम्पादित हुआ । आरम्भिक जैन वाङ्मय अर्धमागधी प्राकृत था, जो भाषा के रूप में उस अवधी भाषा का पूर्व रूप थी, जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी ने आगे जलकर पद्मावत की रचना की थी । पिछली जैन रचनाएँ महाराष्ट्री प्राकृत और संस्कृत में हैं । १४ 1 सन्दर्भ - स्त्रोत ५. : श्रीमद्भागवत, ५.३.२०, ५.४.२ १. २. वही, ५.४.११-१३ ३. वही, ५.७.२-३, ५.४.९. रतिभानु सिंह नाहर : प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, तृतीय संस्करण पृ. १३४-३५ Jain Education International 57 ६. आचारांगसूत्र, २.१५.१५ ७. रतिभानु सिंह नाहर : प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास जयचन्द्र विद्यालंकार : भारतीय वाङ्मय के अमर रत्न, पृ. ९२ ८. ९. वही, पृ. ७२, रतिभानु सिंह नाहर : प्रा. भा. रा. एवं सां. इतिहास पृ. १४१-१४२ १०. एज ऑफ इम्पीरीयल हिस्ट्री, पेज ३४-३५- - रतिभानु सिंह नाहर : प्रा. भा. रा. एवं सां. इतिहास, पृ. १८९. ११. जयचन्द्र विद्यालंकार : भारतीय वाङ्मय के अमर रत्न, पृ. ७३. १२ रतिभानु सिंह नाहर : प्रा. भा. रा. एवं सां. इतिहास, पृ. १४२. १३. जयचन्द्र विद्यालंकार : भारतीय वाङ्मय के अमर रत्न, पृ. ७४-७५. १४. वही, पृ. ७४-७५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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